🙏 नाग पंचमी 2025: स्वागत है सावन के सबसे खास पर्व में
सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा के साथ-साथ कई धार्मिक त्योहारों का आयोजन होता है। उन्हीं में से एक अत्यंत शुभ पर्व है — नाग पंचमी। यह पर्व नाग देवता की आराधना के लिए समर्पित है। भारत के विभिन्न हिस्सों में इस दिन मेलों का आयोजन होता है और नाग देवता को प्रसन्न करने के लिए खास अनुष्ठान किए जाते हैं।
📅 नाग पंचमी 2025 की तारीख और मुहूर्त
इस वर्ष सावन पंचमी 2025 की तिथि को लेकर थोड़ा भ्रम जरूर है, लेकिन धर्म ग्रंथों के अनुसार:
मंत्र का अर्थ: स्वर्ग, पृथ्वी, तालाब, कुएं, नदी या अन्य किसी स्थान पर निवास करने वाले सर्प देवता, आप सभी हमें आशीर्वाद दें। हम आपको नमन करते हैं।
🚫 नाग पंचमी पर क्या करें और क्या नहीं?
✅ करना चाहिए:
नाग देवता की पूजा करें।
मंदिर में जाकर दूध, फूल, फल आदि चढ़ाएं।
उपवास रखें और दान करें।
जरूरतमंदों को वस्त्र और अन्न दान करें।
घर में शांति पाठ या रुद्राभिषेक करवाएं।
❌ नहीं करना चाहिए:
जीवित नाग या सर्प की पूजा न करें।
दूध को जमीन पर न बहाएं।
अंधविश्वास से दूर रहें।
सांपों को पकड़कर दूध पिलाना गलत और पाप है।
🕯 नाग पंचमी पर शिवलिंग पर चढ़ाएं ये 6 पवित्र चीजें
अगर आप शिवलिंग पर इन 6 चीजों को अर्पित करेंगे, तो आपको जीवन में सुख, सौभाग्य और सफलता जरूर मिलेगी:
शहद: सौभाग्य में वृद्धि होती है।
कच्चा दूध: कालसर्प दोष का निवारण होता है।
धतूरा: मनोकामना पूर्ण होती है।
बेलपत्र: शिव जी को अत्यंत प्रिय है।
चंदन और अक्षत: शांति और समृद्धि का प्रतीक। ध्यान रखें, चावल के दाने टूटे न हों।
काले तिल वाला जल: शिवलिंग का अभिषेक करें, इससे सभी ग्रह दोष समाप्त होते हैं।
🏁 निष्कर्ष: सावन पंचमी का पर्व एक आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर अवसर है
नाग पंचमी न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह आध्यात्मिक उन्नति और ग्रह दोष निवारण का उत्तम अवसर भी है। यदि आप सही मुहूर्त में, विधिपूर्वक पूजा करते हैं और उपवास-दान जैसे कार्य करते हैं, तो निश्चित ही आपको नाग देवता और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
📢 Bonus Tip:
यदि आपकी कुंडली में कालसर्प दोष है, तो सावन पंचमी के दिन किसी योग्य पंडित से विशेष पूजा करवा सकते हैं। अपनी जन्म कुण्डली का विश्लेषण करवाने के लिए सम्पर्क करे
भारत विविधताओं का देश है, जहाँ हर क्षेत्र, हर समुदाय और हर ऋतु के अनुसार त्योहार मनाए जाते हैं। इन्हीं त्योहारों में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध पर्व है – तीज। यह विशेषकर महिलाओं के लिए समर्पित पर्व है, जो प्रेम, समर्पण, और सौभाग्य की प्रतीक है। तीज का त्योहार मुख्यतः उत्तर भारत, विशेषकर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और हरियाणा में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस पर्व का धार्मिक और सामाजिक दोनों ही दृष्टियों से अत्यंत महत्व है।
तीज का अर्थ और प्रकार
तीज शब्द का संबंध वर्षा ऋतु से है। तीज तीन प्रकार की होती है – हरियाली तीज, कजरी तीज, और हरतालिका तीज।
हरियाली तीज: यह श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आती है। यह पर्व प्रकृति की हरियाली, नवजीवन और महिला सौंदर्य का प्रतीक है।
कजरी तीज: यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है।
हरतालिका तीज: यह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है और इसे सबसे कठिन उपवास वाला पर्व भी कहा जाता है।
हरियाली तीज विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं द्वारा मनाई जाती है और यह सौभाग्य की कामना से जुड़ा होता है।
तीज का धार्मिक महत्वतीज का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन की स्मृति में मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार, माता पार्वती ने शिव जी को पति रूप में पाने के लिए वर्षों तक कठोर तप किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। इस दिन को माता पार्वती के तप की सफलता और शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के प्रतीक रूप में मनाया जाता है।महिलाएं इस दिन उपवास रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।
तीज की पूजा विधि
तीज की पूजा बहुत विधिपूर्वक की जाती है। प्रातःकाल स्नान कर महिलाएं नवीन वस्त्र धारण करती हैं, हाथों में मेंहदी रचाती हैं और श्रृंगार करती हैं। पूजा के लिए शिव-पार्वती की प्रतिमा की स्थापना की जाती है। महिलाएं घटस्थापना, कथा वाचन, आरती और व्रत करती हैं।
पूजन सामग्री में मेंहदी, चूड़ियाँ, सिंदूर, रोली, अक्षत, जल, फल, मिठाई और नए वस्त्र शामिल होते हैं। संध्या काल में महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और पारंपरिक नृत्य करती हैं।
तीज व्रत का महत्व
तीज का व्रत बहुत कठिन होता है। महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं – यानी न तो जल ग्रहण करती हैं और न ही अन्न। यह व्रत माता पार्वती की कठोर तपस्या की प्रतीक होता है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, सुख और समृद्धि की कामना करती हैं। कुछ स्थानों पर यह व्रत तीन दिन तक भी चलता है – जिसमें पहले दिन ‘सिंदारा’ (श्रृंगार और उपहार), दूसरे दिन उपवास और पूजा, और तीसरे दिन पारण होता है।
तीज का सांस्कृतिक पक्ष
तीज केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव भी है। यह त्योहार महिलाओं को आत्म-प्रकाशन का अवसर देता है। वे सुंदर वस्त्र पहनती हैं, गहनों से सजती हैं, लोकगीत गाती हैं और नृत्य करती हैं।
राजस्थान में तीज का विशेष महत्व है। यहाँ जयपुर की तीज यात्रा प्रसिद्ध है, जिसमें माता पार्वती की सवारी का भव्य जुलूस निकाला जाता है। हाथी, घोड़े, बैंड-बाजे और लोक कलाकार इस शोभायात्रा का हिस्सा बनते हैं।
हरियाणा में भी तीज बड़े उत्साह से मनाई जाती है। वहाँ इसे सावन का सबसे हर्षोल्लासपूर्ण पर्व माना जाता है। मेले लगते हैं, झूले पड़ते हैं और पारंपरिक भोजन जैसे घेवर, मालपुआ, पूड़ी-कचौड़ी आदि बनाए जाते हैं।
मेंहदी और झूले की परंपरा
तीज पर मायके से बेटियों और बहुओं के लिए उपहार भेजे जाते हैं जिसे सिंदारा कहते हैं। इसमें कपड़े, गहने, मिठाइयाँ, श्रृंगार की सामग्री, चूड़ियाँ आदि शामिल होते हैं। यह भावनात्मक रूप से मायके और ससुराल के बीच संबंधों को प्रगाढ़ करता है। यह त्योहार स्त्री के मायके से जुड़े प्रेम और अपनत्व का प्रतीक भी बन गया है।
तीज का धार्मिक महत्व
तीज का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन की स्मृति में मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार, माता पार्वती ने शिव जी को पति रूप में पाने के लिए वर्षों तक कठोर तप किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। इस दिन को माता पार्वती के तप की सफलता और शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के प्रतीक रूप में मनाया जाता है।
महिलाएं इस दिन उपवास रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।
तीज का व्रत बहुत कठिन होता है। महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं – यानी न तो जल ग्रहण करती हैं और न ही अन्न। यह व्रत माता पार्वती की कठोर तपस्या की प्रतीक होता है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, सुख और समृद्धि की कामना करती हैं। कुछ स्थानों पर यह व्रत तीन दिन तक भी चलता है – जिसमें पहले दिन ‘सिंदारा’ (श्रृंगार और उपहार), दूसरे दिन उपवास और पूजा, और तीसरे दिन पारण होता है।
तीज का सांस्कृतिक पक्ष
तीज केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव भी है। यह त्योहार महिलाओं को आत्म-प्रकाशन का अवसर देता है। वे सुंदर वस्त्र पहनती हैं, गहनों से सजती हैं, लोकगीत गाती हैं और नृत्य करती हैं।
राजस्थान में तीज का विशेष महत्व है। यहाँ जयपुर की तीज यात्रा प्रसिद्ध है, जिसमें माता पार्वती की सवारी का भव्य जुलूस निकाला जाता है। हाथी, घोड़े, बैंड-बाजे और लोक कलाकार इस शोभायात्रा का हिस्सा बनते हैं।
हरियाणा में भी तीज बड़े उत्साह से मनाई जाती है। वहाँ इसे सावन का सबसे हर्षोल्लासपूर्ण पर्व माना जाता है। मेले लगते हैं, झूले पड़ते हैं और पारंपरिक भोजन जैसे घेवर, मालपुआ, पूड़ी-कचौड़ी आदि बनाए जाते हैं।
मेंहदी और झूले की परंपरा
तीज पर महिलाओं के लिए मेंहदी और झूला विशेष महत्व रखते हैं। मेंहदी को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और तीज पर महिलाएं अपने हाथों में सुंदर मेंहदी रचवाती हैं। झूला झूलना इस पर्व की विशेष परंपरा है। यह वर्षा ऋतु की छटा का स्वागत करता है। पेड़ों की शाखाओं पर झूले लगाए जाते हैं और महिलाएं समूह में झूलती, गाती और हँसती-खेलती हैं।
सिंदारा और उपहार
तीज पर मायके से बेटियों और बहुओं के लिए उपहार भेजे जाते हैं जिसे सिंदारा कहते हैं। इसमें कपड़े, गहने, मिठाइयाँ, श्रृंगार की सामग्री, चूड़ियाँ आदि शामिल होते हैं। यह भावनात्मक रूप से मायके और ससुराल के बीच संबंधों को प्रगाढ़ करता है। यह त्योहार स्त्री के मायके से जुड़े प्रेम और अपनत्व का प्रतीक भी बन गया है।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में तीज
आज के समय में जब लोग तेजी से आधुनिक जीवनशैली की ओर बढ़ रहे हैं, तीज जैसे त्योहार हमें अपनी संस्कृति से जोड़े रखते हैं। अब तीज केवल धार्मिक नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण का उत्सव भी बन चुका है। शहरों में कई सामाजिक संस्थाएं तीज महोत्सव का आयोजन करती हैं, जहाँ महिलाओं को अपनी कला, संस्कृति, और नेतृत्व क्षमता दिखाने का अवसर मिलता है।
निष्कर्ष
तीज एक ऐसा त्योहार है जो धार्मिक आस्था, सामाजिक सरोकार और सांस्कृतिक चेतना का अद्भुत संगम है। यह पर्व स्त्रियों के आत्मबल, प्रेम, समर्पण और सौंदर्य का प्रतीक है। तीज हमें यह भी सिखाता है कि प्रेम, त्याग और आस्था के बल पर कोई भी कठिनाई पार की जा सकती है।
भारत में तीज जैसे पर्व न केवल पारंपरिक जीवनशैली की झलक दिखाते हैं, बल्कि आधुनिक समाज में भी महिलाओं के आत्मविश्वास और सामाजिक सहभागिता को बढ़ावा देते हैं। इसलिए तीज केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की धरोहर है।
🌿 हरियाली तीज
🔹 तारीख: रविवार, 27 जुलाई 2025 🔹 यह श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को आती है। यह सुहागिनों का प्रमुख पर्व है और शिव-पार्वती के पुनर्मिलन की स्मृति में मनाया जाता है।
🌧 कजरी तीज
🔹 तारीख: सोमवार, 11 अगस्त 2025 🔹 यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को आती है। इसमें महिलाएं गीत गाती हैं और पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
वक्री समाप्ति: 28 नवंबर 2025 (शुक्रवार), सुबह 9:20 बजे
कुल अवधि: लगभग 138 दिन (5 महीने से अधिक)
इस अवधि में शनि मीन राशि में वक्री अवस्था में रहेंगे।
🌌 वक्री शनि का ज्योतिषीय महत्व
जब कोई ग्रह वक्री होता है, तो वह पृथ्वी से पीछे की ओर चलता हुआ प्रतीत होता है। शनि जब वक्री होता है, तो यह व्यक्ति को अपने अतीत के कर्मों की परीक्षा देता है। यह समय धैर्य, आत्ममंथन और कर्मसुधार का होता है।
🪐 शनि वक्री: कर्मों का लेखा-जोखा और आत्मनिरीक्षण का समय
शनि देव को ‘कर्मों का न्यायाधीश’ माना जाता है। जब वे वक्री होते हैं, तो व्यक्ति को अपने किए गए कर्मों का परिणाम तेजी से और तीव्रता से मिलने लगता है। यह समय हमें जीवन की दिशा को पुनः जांचने और सुधारने का अवसर देता है।
वक्री शनि अक्सर पुराने अधूरे कार्यों को सामने लाते हैं — जैसे कि अधूरी जिम्मेदारियाँ, पुराने रिश्तों में कड़वाहट, या वह लक्ष्य जिन्हें हम टालते आ रहे थे। यह काल जीवन में ऐसी घटनाओं को जन्म देता है जो हमें भीतर से परिपक्व बनाते हैं।
शनि वक्री में अक्सर व्यक्ति को अकेलापन, आत्म-मंथन, या कभी-कभी निराशा का अनुभव होता है, लेकिन यह केवल बाह्य रूप होता है। असल में, यह काल अंतरात्मा की शुद्धि के लिए बहुत उपयोगी है। जो व्यक्ति इस समय धैर्य रखता है, ईमानदारी से आत्म-निरीक्षण करता है और अपने कर्मों को सुधारता है, उसे दीर्घकालिक सफलता अवश्य प्राप्त होती है।
इस अवधि में ध्यान, साधना, सामाजिक सेवा और संयमपूर्ण जीवनशैली अपनाने से शनि के सकारात्मक प्रभाव को आकर्षित किया जा सकता है।
🪐 शनि वक्री का ज्योतिषीय महत्व
शनि ग्रह न्याय और कर्म के प्रतीक हैं। जब वे वक्री होते हैं, तो यह काल आत्मनिरीक्षण और पुराने कार्यों को सुधारने का अवसर होता है। वक्री चाल के दौरान कई बार जीवन में विलंब, रुकावट और मानसिक तनाव बढ़ जाता है, लेकिन यह समय आध्यात्मिक प्रगति के लिए उपयुक्त होता है। ज्योतिष में इसे कर्मों का पुनः मूल्यांकन कहा जाता है। जो व्यक्ति संयम और साधना से इस समय को बिताते हैं, उन्हें दीर्घकाल में लाभ मिलता है। शनि वक्री काल में सेवा, दान और ध्यान विशेष फलदायी माने जाते हैं
🌟 12 राशियों पर शनि वक्री का प्रभाव
♈ मेष (Aries)
प्रभाव: मानसिक तनाव, पारिवारिक कलह
उपाय: शनिदेव को तिल का तेल चढ़ाएं और ‘ॐ शं शनैश्चराय नमः’ का जाप करें।
♉ वृषभ (Taurus)
प्रभाव: करियर में रुकावट, आर्थिक चिंता
उपाय: शनिवार को काले तिल और उड़द दान करें।
♊ मिथुन (Gemini)
प्रभाव: स्वास्थ्य समस्याएं, ग़लत निर्णय
उपाय: हनुमान चालीसा का पाठ करें और शनि मंदिर में दर्शन करें।
♋ कर्क (Cancer)
प्रभाव: रिश्तों में खटास, काम में रुकावट
उपाय: शनि स्तोत्र का पाठ करें और नीले फूल चढ़ाएं।
♌ सिंह (Leo)
प्रभाव: धन हानि, कोर्ट-कचहरी के मामले
उपाय: काले वस्त्र पहनकर शनिदेव को जल चढ़ाएं।
♍ कन्या (Virgo)
प्रभाव: मानसिक भ्रम, अस्थिरता
उपाय: शनिवार को कुष्ठ रोगियों को भोजन कराएं।
♎ तुला (Libra)
प्रभाव: नौकरी में तनाव, पार्टनर से विवाद
उपाय: काली गाय को रोटी खिलाएं और नीले वस्त्र दान करें।
♏ वृश्चिक (Scorpio)
प्रभाव: यात्रा में बाधा, स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ
उपाय: शनि चालीसा का नियमित पाठ करें।
♐ धनु (Sagittarius)
प्रभाव: आध्यात्मिक विकास, लेकिन पारिवारिक दूरी
उपाय: शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाएं और दीपक लगाएं।
♑ मकर (Capricorn)
प्रभाव: कार्य में विलंब, प्रमोशन में बाधा
उपाय: शनिवार को लोहे की वस्तु का दान करें।
♒ कुंभ (Aquarius)
प्रभाव: करियर में बदलाव, मानसिक थकावट
उपाय: गरीबों में चप्पल या कंबल बाँटें।
♓ मीन (Pisces)
प्रभाव: आत्म-मंथन का समय, आध्यात्मिक उन्नति
उपाय: हर शनिवार को पीपल के पेड़ की परिक्रमा करें।
🧿 शनि वक्री काल में सामान्य उपाय
शनिवार को व्रत रखें।
काले तिल, सरसों का तेल और उड़द दान करें।
शनि स्तोत्र, दशरथ कृत शनि स्तुति और हनुमान चालीसा का पाठ करें।
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। हर मास में दो एकादशी तिथियाँ होती हैं — एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को “कामिका एकादशी” कहा जाता है। यह व्रत आध्यात्मिक उन्नति, पापों के नाश और मोक्ष प्राप्ति के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
श्रावण माह भगवान शिव का प्रिय मास है, जबकि एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। अतः जब श्रावण मास की एकादशी आती है, तब इसका फल अनंतगुणा बढ़ जाता है।
श्रावण कृष्ण पक्ष की एकादशी (कामिका एकादशी) 2025 में कब है?
तिथि: 👉 कामिका एकादशी व्रत – 👉 एकादशी तिथि आरंभ –20 जुलाई को दोपहर 12.15 👉 तिथि समाप्त – 21 जुलाई प्रातः 9 बजकर.38 मिनट उदया तिथि के अनुसार एकादशी व्रत 21 जुलाई को रखा जाएगा
पारण (व्रत खोलने का समय): 👉 22 जुलाई 2025 प्रातः 5.36 से 8.20 तक
कामिका एकादशी का धार्मिक महत्व:
कामिका एकादशी व्रत का उल्लेख पद्म पुराण और विष्णु पुराण जैसे ग्रंथों में मिलता है। इस दिन व्रत रखने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष या किसी भी नकारात्मक भावना से ग्रसित हैं।
इस व्रत को करने से:
मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
पूर्व जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है।
ब्रह्महत्या जैसे घोर पाप भी क्षमा हो जाते हैं।
व्रत विधि (कैसे करें कामिका एकादशी व्रत):
व्रत की पूर्व संध्या (दशमी तिथि):
सात्विक भोजन करें।
रात्रि को एक समय भोजन करें या उपवास की तैयारी करें।
मानसिक रूप से व्रत का संकल्प लें।
एकादशी के दिन:
प्रातः काल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
घर में गंगाजल छिड़ककर पवित्रता करें।
भगवान विष्णु की प्रतिमा को पीले वस्त्र पहनाएं।
तुलसी दल, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें।
दिनभर फलाहार पर रहें, जल कम मात्रा में लें या निर्जल व्रत करें।
रात्रि जागरण करें और भगवान का भजन-कीर्तन करें।
द्वादशी के दिन (पारण):
सूर्योदय के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
दान-दक्षिणा दें।
व्रत खोलें और स्वयं सात्विक भोजन करें।
कामिका एकादशी व्रत कथा (पौराणिक कथा):
प्राचीन काल की बात है, एक गांव में एक क्रूर स्वभाव का क्षत्रिय रहता था। उसे क्रोध बहुत आता था। एक दिन उसके पड़ोसी से झगड़ा हो गया और गुस्से में आकर उसने उसे मार डाला। इस हत्या के बाद उसके मन में बहुत पछतावा हुआ, लेकिन उसे कोई मार्ग नहीं सूझ रहा था।
वह एक बार एक ऋषि के पास गया और उनसे अपने पाप के प्रायश्चित का उपाय पूछा। ऋषि ने कहा, “तुमने ब्रह्महत्या के समान पाप किया है, परंतु यदि तुम श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी (कामिका एकादशी) का व्रत पूरे नियम से करो, तो तुम्हारा यह पाप भी क्षम्य हो सकता है।”
उसने पूरी श्रद्धा और विधिपूर्वक कामिका एकादशी का व्रत रखा। उसने दिनभर भगवान विष्णु का स्मरण किया, रात्रि में जागरण किया और द्वादशी को ब्राह्मणों को भोजन करवाकर व्रत पूर्ण किया।
इस व्रत के प्रभाव से उसके सारे पाप समाप्त हो गए और उसे परम शांत जीवन प्राप्त हुआ। वह परमगति को प्राप्त हुआ और अंत में विष्णुधाम को चला गया।
कामिका एकादशी के अन्य विशेष लाभ:
क्रोध और वैरभाव से मुक्ति: जो लोग मन में दूसरों के प्रति द्वेष या द्वंद्व रखते हैं, इस व्रत से उन्हें मानसिक शांति मिलती है।
वास्तु दोष निवारण: मान्यता है कि यदि घर में इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और तुलसी पूजन किया जाए, तो घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
पितृ दोष शांति: इस दिन पूर्वजों को तर्पण व दान देने से पितृ तृप्त होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
तुलसी पूजन का विशेष महत्त्व:
कामिका एकादशी पर तुलसी दल अर्पण करना अत्यंत पुण्यकारी होता है। भगवान विष्णु को तुलसी अर्पित किए बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। ऐसा कहा गया है कि तुलसी स्वयं लक्ष्मीजी का स्वरूप हैं।