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भारत विविधताओं का देश है, जहाँ हर क्षेत्र, हर समुदाय और हर ऋतु के अनुसार त्योहार मनाए जाते हैं। इन्हीं त्योहारों में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध पर्व है – तीज। यह विशेषकर महिलाओं के लिए समर्पित पर्व है, जो प्रेम, समर्पण, और सौभाग्य की प्रतीक है। तीज का त्योहार मुख्यतः उत्तर भारत, विशेषकर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और हरियाणा में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस पर्व का धार्मिक और सामाजिक दोनों ही दृष्टियों से अत्यंत महत्व है।
तीज का अर्थ और प्रकार
तीज शब्द का संबंध वर्षा ऋतु से है। तीज तीन प्रकार की होती है – हरियाली तीज, कजरी तीज, और हरतालिका तीज।
- हरियाली तीज: यह श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आती है। यह पर्व प्रकृति की हरियाली, नवजीवन और महिला सौंदर्य का प्रतीक है।
- कजरी तीज: यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है।
- हरतालिका तीज: यह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है और इसे सबसे कठिन उपवास वाला पर्व भी कहा जाता है।

हरियाली तीज विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं द्वारा मनाई जाती है और यह सौभाग्य की कामना से जुड़ा होता है।
तीज का धार्मिक महत्वतीज का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन की स्मृति में मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार, माता पार्वती ने शिव जी को पति रूप में पाने के लिए वर्षों तक कठोर तप किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। इस दिन को माता पार्वती के तप की सफलता और शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के प्रतीक रूप में मनाया जाता है।महिलाएं इस दिन उपवास रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।
तीज की पूजा विधि
तीज की पूजा बहुत विधिपूर्वक की जाती है। प्रातःकाल स्नान कर महिलाएं नवीन वस्त्र धारण करती हैं, हाथों में मेंहदी रचाती हैं और श्रृंगार करती हैं। पूजा के लिए शिव-पार्वती की प्रतिमा की स्थापना की जाती है। महिलाएं घटस्थापना, कथा वाचन, आरती और व्रत करती हैं।
पूजन सामग्री में मेंहदी, चूड़ियाँ, सिंदूर, रोली, अक्षत, जल, फल, मिठाई और नए वस्त्र शामिल होते हैं। संध्या काल में महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और पारंपरिक नृत्य करती हैं।
तीज व्रत का महत्व
तीज का व्रत बहुत कठिन होता है। महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं – यानी न तो जल ग्रहण करती हैं और न ही अन्न। यह व्रत माता पार्वती की कठोर तपस्या की प्रतीक होता है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, सुख और समृद्धि की कामना करती हैं। कुछ स्थानों पर यह व्रत तीन दिन तक भी चलता है – जिसमें पहले दिन ‘सिंदारा’ (श्रृंगार और उपहार), दूसरे दिन उपवास और पूजा, और तीसरे दिन पारण होता है।
तीज का सांस्कृतिक पक्ष
तीज केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव भी है। यह त्योहार महिलाओं को आत्म-प्रकाशन का अवसर देता है। वे सुंदर वस्त्र पहनती हैं, गहनों से सजती हैं, लोकगीत गाती हैं और नृत्य करती हैं।
राजस्थान में तीज का विशेष महत्व है। यहाँ जयपुर की तीज यात्रा प्रसिद्ध है, जिसमें माता पार्वती की सवारी का भव्य जुलूस निकाला जाता है। हाथी, घोड़े, बैंड-बाजे और लोक कलाकार इस शोभायात्रा का हिस्सा बनते हैं।
हरियाणा में भी तीज बड़े उत्साह से मनाई जाती है। वहाँ इसे सावन का सबसे हर्षोल्लासपूर्ण पर्व माना जाता है। मेले लगते हैं, झूले पड़ते हैं और पारंपरिक भोजन जैसे घेवर, मालपुआ, पूड़ी-कचौड़ी आदि बनाए जाते हैं।
मेंहदी और झूले की परंपरा
तीज पर मायके से बेटियों और बहुओं के लिए उपहार भेजे जाते हैं जिसे सिंदारा कहते हैं। इसमें कपड़े, गहने, मिठाइयाँ, श्रृंगार की सामग्री, चूड़ियाँ आदि शामिल होते हैं। यह भावनात्मक रूप से मायके और ससुराल के बीच संबंधों को प्रगाढ़ करता है। यह त्योहार स्त्री के मायके से जुड़े प्रेम और अपनत्व का प्रतीक भी बन गया है।
तीज का धार्मिक महत्व
तीज का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन की स्मृति में मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार, माता पार्वती ने शिव जी को पति रूप में पाने के लिए वर्षों तक कठोर तप किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। इस दिन को माता पार्वती के तप की सफलता और शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के प्रतीक रूप में मनाया जाता है।
महिलाएं इस दिन उपवास रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।
तीज का व्रत बहुत कठिन होता है। महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं – यानी न तो जल ग्रहण करती हैं और न ही अन्न। यह व्रत माता पार्वती की कठोर तपस्या की प्रतीक होता है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, सुख और समृद्धि की कामना करती हैं। कुछ स्थानों पर यह व्रत तीन दिन तक भी चलता है – जिसमें पहले दिन ‘सिंदारा’ (श्रृंगार और उपहार), दूसरे दिन उपवास और पूजा, और तीसरे दिन पारण होता है।
तीज का सांस्कृतिक पक्ष
तीज केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव भी है। यह त्योहार महिलाओं को आत्म-प्रकाशन का अवसर देता है। वे सुंदर वस्त्र पहनती हैं, गहनों से सजती हैं, लोकगीत गाती हैं और नृत्य करती हैं।
राजस्थान में तीज का विशेष महत्व है। यहाँ जयपुर की तीज यात्रा प्रसिद्ध है, जिसमें माता पार्वती की सवारी का भव्य जुलूस निकाला जाता है। हाथी, घोड़े, बैंड-बाजे और लोक कलाकार इस शोभायात्रा का हिस्सा बनते हैं।
हरियाणा में भी तीज बड़े उत्साह से मनाई जाती है। वहाँ इसे सावन का सबसे हर्षोल्लासपूर्ण पर्व माना जाता है। मेले लगते हैं, झूले पड़ते हैं और पारंपरिक भोजन जैसे घेवर, मालपुआ, पूड़ी-कचौड़ी आदि बनाए जाते हैं।
मेंहदी और झूले की परंपरा
तीज पर महिलाओं के लिए मेंहदी और झूला विशेष महत्व रखते हैं। मेंहदी को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और तीज पर महिलाएं अपने हाथों में सुंदर मेंहदी रचवाती हैं। झूला झूलना इस पर्व की विशेष परंपरा है। यह वर्षा ऋतु की छटा का स्वागत करता है। पेड़ों की शाखाओं पर झूले लगाए जाते हैं और महिलाएं समूह में झूलती, गाती और हँसती-खेलती हैं।
सिंदारा और उपहार
तीज पर मायके से बेटियों और बहुओं के लिए उपहार भेजे जाते हैं जिसे सिंदारा कहते हैं। इसमें कपड़े, गहने, मिठाइयाँ, श्रृंगार की सामग्री, चूड़ियाँ आदि शामिल होते हैं। यह भावनात्मक रूप से मायके और ससुराल के बीच संबंधों को प्रगाढ़ करता है। यह त्योहार स्त्री के मायके से जुड़े प्रेम और अपनत्व का प्रतीक भी बन गया है।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में तीज
आज के समय में जब लोग तेजी से आधुनिक जीवनशैली की ओर बढ़ रहे हैं, तीज जैसे त्योहार हमें अपनी संस्कृति से जोड़े रखते हैं। अब तीज केवल धार्मिक नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण का उत्सव भी बन चुका है। शहरों में कई सामाजिक संस्थाएं तीज महोत्सव का आयोजन करती हैं, जहाँ महिलाओं को अपनी कला, संस्कृति, और नेतृत्व क्षमता दिखाने का अवसर मिलता है।
निष्कर्ष
तीज एक ऐसा त्योहार है जो धार्मिक आस्था, सामाजिक सरोकार और सांस्कृतिक चेतना का अद्भुत संगम है। यह पर्व स्त्रियों के आत्मबल, प्रेम, समर्पण और सौंदर्य का प्रतीक है। तीज हमें यह भी सिखाता है कि प्रेम, त्याग और आस्था के बल पर कोई भी कठिनाई पार की जा सकती है।
भारत में तीज जैसे पर्व न केवल पारंपरिक जीवनशैली की झलक दिखाते हैं, बल्कि आधुनिक समाज में भी महिलाओं के आत्मविश्वास और सामाजिक सहभागिता को बढ़ावा देते हैं। इसलिए तीज केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की धरोहर है।
🌿 हरियाली तीज
🔹 तारीख: रविवार, 27 जुलाई 2025
🔹 यह श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को आती है। यह सुहागिनों का प्रमुख पर्व है और शिव-पार्वती के पुनर्मिलन की स्मृति में मनाया जाता है।
🌧 कजरी तीज
🔹 तारीख: सोमवार, 11 अगस्त 2025
🔹 यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को आती है। इसमें महिलाएं गीत गाती हैं और पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
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