दीपावली और लक्ष्मी पूजन के लिए कौन-सा दिन रहेगा शुभ

दिवाली

कार्तिक मास की अमावस्या तिथि 20 अक्टूबर की दोपहर तीन बजकर 44 मिनट से शुरू होकर 21 अक्टूबर की शाम पांच बजकर 54 मिनट तक रहेगी। लेकिन चूंकि दीपावली रात में मनाई जाती है, इसलिए 20 अक्टूबर की रात को ही लक्ष्मी पूजन करना श्रेष्ठ माना गया है। मान्यता है कि प्रदोष काल में पूजा से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

दिवाली की पौराणिक कथाएँ

1. श्रीराम की अयोध्या लौटना

भगवान श्रीराम ने 14 वर्ष का वनवास काटने के बाद रावण का वध कर अयोध्या लौटे। उनका स्वागत दीपों की ज्योति से किया गया। इसलिए उसी स्मरण में दीपावली मनाई जाती है।

2. समुद्र मंथन और लक्ष्मी प्रकट

ज्योतिवादों में कहा गया है कि समुद्र मंथन के बाद माता लक्ष्मी प्रकट हुईं। इसलिए इस दिन उन्हें पूजा के माध्यम से सम्मानित किया जाता है।

3. नरकासुर वध

एक कथानुसार, भगवान विष्णु ने नरकासुर नामक असुर का वध किया। इस दिन को नरक चतुर्दशी कहा जाता है — बुराई पर विजय का प्रतीक।

4. ज्ञान और प्रकाश की विजय

दीप, मोमबत्ती और वनमाला आदि से रोशन करना इस विश्वास का प्रतीक है कि ज्ञान अज्ञान, शांति अशांति, और अच्छाई बुराई पर विजय पा सकती है।

ये कथाएँ यह सिखाती हैं कि दिवाली केवल बाहरी रोशनी का त्योहार नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागृति, शुद्धि और नवीकरण का पर्व है।


Table of Contents

दिवाली 2025 में क्यों खास?

  • दो दिवसीय अमावस्या: इस वर्ष अमावस्या दो दिन बनी है — 20 अक्तूबर दोपहर से शुरू और 21 अक्तूबर शाम तक। इसलिए दिवाली मनाने की सही तिथि का चयन करना महत्वपूर्ण है।
  • शुभ मुहूर्त: इस वर्ष लक्ष्मी पूजा का अनुकूल समय (मुहूर्त) शाम 7:08 बजे से 8:18 बजे तक माना गया है।
  • समय का प्रबंधन: क्योंकि अमावस्या दो दिन तक है, कई लोग सुबह पूजा कर सकते हैं, लेकिन श्रेष्ठ समय में पूजा अधिष्ठित मानी जाएगी।

दिवाली की तैयारी: बेहतर योजना, अनुष्ठान और सजावट

घर की सफाई और संयोजन

  • त्योहार से पहले घर को पूरी तरह साफ़ करें — दीवारों का रंगमोंदन, फर्श की धोई आदि
  • फर्नीचर की जगहों को व्यवस्थित करें ताकि पूजा स्थान स्वच्छ और खुला हो
  • दीये लगाएं, रंगोली तैयार करें, बंदनवार एवं तोरण लगाएं

सजावट की आधुनिक एवं पारंपरिक कला

  • मिट्टी या मिट्टी के दीये
  • LED स्ट्रिप लाइट्स या fairy lights
  • ग्लास लैम्प, कटआउट डिज़ाइन
  • रंगीन फूल, माला, ।
  • Eco-friendly सजावटी सामान — कागज, बांस, पुनः उपयोग हो सकने वाले सामग्रियाँ

फूल, गंध और प्रकाश

मालाएं, गुलाब, चमेली, और अन्य सुगंधित फूल लगाने से सकारात्मक ऊर्जा आती है। अगरबत्ती, धूप, कपूर का उपयोग करें।

पूजा विधि और मंत्र (लक्ष्मी‑गणेश पूजा)

आवश्यक सामग्री:

  • मूर्ति / प्रतिमा: माँ लक्ष्मी, गणेश एवं कुबेर
  • कलश, स्वास्तिक चिन्ह, पान, सुपारी
  • हल्दी, कुमकुम, चावल, अक्षत
  • फूल, दीपक, घी, नैवेद्य (मिठाई, फल)
  • धन (सिक्के, नोट्स)

पूजन क्रम (संक्षिप्त रूप)

  1. पूजा स्थान को स्वच्छ करें और सफाई रखें
  2. कलश स्थापित करें तथा स्वास्तिक चिन्ह बनाएं
  3. लक्ष्मी, गणेश और कुबेर की प्रतिमाओं की स्थापना
  4. दीपक जलाएं और सुगंधित धूप करें
  5. मंत्रों का जाप: “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः”
    गणेशावतार मंत्र आदि
  6. तिलक, प्रसाद, फल और मिठाई अर्पित करें
  7. धन पूजा — सिक्के / नोटों से पूजन
  8. आरती करें और प्रसाद बांटें

पूजा के बाद परिवार और मित्रों को शुभकामनाएँ दें और मिठाई व उपहार साझा करें।

में क्या करें और क्या न करें

करें:

  • Eco-friendly दिवाली मनाएं — हल्के और प्रदूषण रहित पटाखे
  • बुज़ुर्गों, जरूरतमंदों, अनाथों को मिठाई, वस्त्र दान करें
  • बच्चों को सुरक्षित पटाखे दें (यदि उपयोग करते हों)
  • सांप्रदायिक कार्यक्रमों में भाग लें, समाज में मेलजोल बढ़ाएं
  • घर और आसपास साफ-सफाई रखें

न करें:

  • अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों का उपयोग न करें
  • प्लास्टिक आधारित सजावट, फाइलिंग्वाले फटाके न उपयोग करें
  • पूजा समय की अनदेखी न करें — समयानुकूल विधि का पालन करें
  • धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला व्यवहार न करें
  • अनावश्यक उत्पत्तियाँ न करें — ऊर्जा, जल की बरबादी
  • रंगोली प्रतियोगिता — पारंपरिक या अभिनव डिजाइन
  • दीप निर्माण कार्यशालाएँ — मिट्टी, मोम, धातु से
  • समुदाय दीप प्रज्ज्वलन — मोहल्ले या कॉलोनी में
  • संझा सांस्कृतिक कार्यक्रम — नृत्य, गीत, नाटक
  • उत्सव ऑनलाइन — सोशल मीडिया लाइव, शुभकामनाएं, प्रतियोगिताएँ

दिवाली और पर्यावरण: सावधानी अत्यंत ज़रूरी

पटाखों के धुएँ और रसायन वायु में प्रदूषण बढ़ाते हैं। एक अध्ययन ने दिल्ली में दिवाली के दौरान PM2.5 स्तर में 16 गुना वृद्धि दर्ज की।

  • कृपया eco-friendly पटाखे, बायोडिग्रेडेबल सजावट, कम ध्वनि वाले लाइट शो आदि अपनाएँ
  • दीये या LED लाइट्स का अधिक उपयोग करें
  • पटाखे जलाने के बाद कचरा तुरंत साफ करें

लक्ष्मी पूजा के बाद: शुभ कार्य और उपहार

  • पूजा के बाद प्रसाद बांटना, मित्रों और परिवार को उपहार देना शुभ माना जाता है
  • सोना-चाँदी, कपड़े, मिठाई, दीये आदि उपहार के रूप में उपयोग करें
  • डिजिटल उपहार — ई-वाउचर, ऑनलाइन ग्रीटिंग्स
  • साझा भोजन या भोजन दान — जरूरतमंदों को भोजन देना

दिवाली 2025 की हार्दिक शुभकामनाएँ!
आपका त्योहार मंगलमय हो, सुख, समृद्धि और प्रेम से भरा हो।

करवा चौथ 2025: तिथि, महत्व, व्रत नियम और पूजा विधि

करवा चौथ

करवा चौथ (Karwa Chauth) उत्तर भारत में विवाहिता महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख व्रत-त्यौहार है। इस दिन महिलाएँ निर्जला व्रत रखती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। यह व्रत पति की लंबी आयु, सौभाग्य, स्वास्थ्य और दांपत्य सुख की कामना के लिए रखा जाता है।

2025 में करवा चौथ का महत्व, तिथि‑मुहूर्त, पूजा-विधि, कथा, व्रत नियम और रूप-रंग, सजावट टिप्स आदि जानना हर महिला व परिवार के लिए उपयोगी होगा। इस ब्लॉग में हम विस्तार से करवा चौथ 2025 से जुड़ी हर महत्वपूर्ण जानकारी साझा करेंगे।


करवा चौथ 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त

1. तिथि / दिन

2025 में करवा चौथ का व्रत 10 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाया जाता है
चतुर्थी तिथि की शुरुआत 9 अक्टूबर, रात 10:54 बजे से होगी और यह 10 अक्टूबर शाम 7:38 बजे तक रहेगी।

2. व्रत का समय

– व्रत प्रारंभ: सुबह 6:19AM
– चंद्रमा उदय (चांद निकलने का समय): रात 8:13PM
– पूजा समय (शुभ मुहूर्त): शाम 5:57PM से 7:11PM

ध्यान दें: ये समय सम्प्रति पंचांगों और खगोलीय गणनाओं पर आधारित हैं। आपके स्थान (शहर/समय क्षेत्र) के अनुसार थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है, इसलिए स्थानीय पंचांग से समय अवश्य जाँचे।


करवा चौथ का महत्व और पौराणिक कथा

1. व्रत का धार्मिक और सामाजिक महत्व

  • करवा चौथ व्रत को पति की लंबी आयु, सुख, समृद्धि और देह‑स्वास्थ्य की कामना का प्रतीक माना गया है।
  • यह व्रत दांपत्य प्रेम, निष्ठा और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।
  • सामाजिक रूप से, यह व्रत महिलाओं को आध्यात्मिक दृष्टि से जोड़ने, संस्कृति और परंपराओं को आगे बढ़ाने का एक माध्यम बनता है।

2. पौराणिक कथा

कारव (Karva) नामक एक लड़की की कथा से यह व्रत जुड़ा है — कहा जाता है कि उसने अपने भाइयों से मिन्नत करते हुए व्रत रखा और अंततः उसके पति को मृत्यु से बचाया गया। इस कथा के माध्यम से यह सिखाया जाता है कि श्रद्धा, निष्ठा और प्रेम से बड़ी से बड़ी विपत्ति को टाला जा सकता है।

(आप इस भाग में स्थानीय या परिवार में प्रचलित कथा भी जोड़ सकते हैं।)


व्रत नियम एवं सावधानियाँ

1. व्रत प्रकार

– निर्जला व्रत: दिन भर बिना भोजन और पानी के रखा जाता है (सुबह से चंद्रमा दर्शन तक)
– यदि किसी स्त्री को स्वास्थ्य संबंधी समस्या हो (उच्च रक्तचाप, शुगर आदि), तो व्रत छूट या उपयुक्त सलाह लेना आवश्यक है।

2. व्रत संकल्प

सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

3. व्रत के दौरान

  • दिनभर किसी प्रकार का जलपान न करें।
  • सामाजिक व धार्मिक गतिविधियों में ध्यान लगाएँ — पूजा, ध्यान, जप, कथा सुनना आदि।
  • मानसिक शांति बनाए रखें, क्रोध या विवाद से बचें।
  • यदि संभव हो, हल्का व्यायाम, चलना, ध्यान आदि करें ताकि स्वास्थ्य भी ठीक रहे।

4. व्रत तोड़ने का तरीके

चंद्रमा निकलने के बाद, महिलाएं एक छलनी (चालनी) एवं दीपक लेकर चंद्रमा को देखती हैं, फिर पति के हाथों से पानी ग्रहण कर व्रत तोड़ती हैं। इसके बाद हल्का भोजन लिया जाता है।


पूजा विधि: चरणबद्ध मार्गदर्शन

नीचे चरणों में पूजा विधि दी गई है — आप इसे अपनी सुविधा के अनुसार स्थानीय रीति-रिवाज से संयोजित कर सकती हैं:

चरणविवरण
1. सरगी ग्रहणव्रत रखने से पहले सास (या परिवार की महिला) द्वारा बहू को सरगी दी जाती है — जिसमें फल, सूखे मेवे, हल्का पकवान आदि शामिल होते हैं।
2. स्नान एवं स्वच्छ वस्त्रसुबह स्नान कर स्वच्छ और पारंपरिक वस्त्र पहनें।
3. व्रत संकल्पप्रति किया गया संकल्प बोले — “मैं करवा चौथ व्रत (निर्जला व्रत) रखती हूँ, …” इत्यादि।
4. पूजा स्थान सजानाघर में पूजा स्थल (मंडप) तैयार करें — मिट्टी की चौकी, चौकी पर लाल चूनरी, फूल, दीपक आदि रखें।
5. पूजा सामग्री अवश्य रखेंनीचे “पूजा सामग्री” अनुभाग देखें।
6. धूप, दीप एवं आरतीदियों, धूप-दीप आदि से पूजा करें। पूजा आरंभ करें — देवी-देवताओं को अर्पण करें।
7. व्रत कथा / कथा पाठव्रत की कथा सुनी जाए या पढ़ी जाए।
8. चंद्रमा दर्शन एवं व्रत तोड़नाचंद्रमा निकलते ही छलनी व दीपक से चंद्रमा को देखें, फिर पति के हाथों से जल ग्रहण करें और व्रत खोलें।
9. भोजनहल्का पारण करें — खीर, फल, हलवा आदि लिया जा सकता है।

पूजा सामग्री (Samagri सूची)

– मिट्टी का करवा या कलश
– दीपक, घी / तेल
– धूप / अगरबत्ती
– पुष्प (फूल)
– फल, मिठाई
– चावल (अक्षत)
– सिंदूर, रोली / कुमकुम
– मेवे / सूखे फल
– चुनरी / लाल वस्त्र
– झूला / झुलनी (छलनी)
– जल (गंगाजल या शुद्ध जल)
– मीठा (खीर / हलवा)
– पान-सुपारी (यदि रीति अनुसार)
– नारियल (कुछ स्थानों पर)
– जल-लोटा / कलश

आप इस सूची को अपने क्षेत्र और परिवार की परंपरा के अनुसार घटा-बहला सकती हैं।


सजावट, श्रृंगार और शैली टिप्स

  1. पारंपरिक पोशाक
    • लाल, गुलाबी, या मिटी (earth tone) रंग की साड़ी या लहँगा-चोली पहनना शुभ माना जाता है।
    • पारंपरिक आभूषण जैसे सोने / चांदी की चूड़ियाँ, पायल, बिंदी, झुमके आदि।
  2. श्रृंगार
    • मेहंदी डिज़ाइन हाथों और पैरों पर लगाना।
    • हल्का-फुल्का मेकअप, श्रृंगार पर अधिक जोर न दें — श्राद्ध एवं भक्ति पर ध्यान दें।
    • गहनों का संयोजन सरल और सुंदर रखें।
  3. सजावट
    • पूजा स्थान को फूलों, मोमबत्तियों और रंगोली से सजाएं।
    • मेहराब या पारदर्शी पर्दे, कुशन या सपोर्टर (बैठने के लिए) रखें।
    • हल्की रोशनी से वातावरण को पवित्र बनाएं।
  4. सहयोग
    • परिवार के अन्य सदस्यों, विशेष रूप से पति, माता–पिता, सास-ससुर आदि को पूजा में शामिल करें।
    • छोटी-छोटी मदद जैसे फूल तोड़ना, दीपक लगाना आदि साझा करें।

व्रत के लाभ, उपाय एवं विशेष बातें

1. आध्यात्मिक लाभ

– मानसिक शांति और आत्मविश्वास मिलता है।
– प्रेम और विश्वास का बंधन मजबूत होता है।
– पारिवारिक सौहार्द एवं संबंधों में मधुरता आती है।

शरद पूर्णिमा व्रत महत्व और पूजा विधि

शरद पूर्णिमा
शरद पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा स्नान-दान समय

  • ब्रह्म मुहूर्त 04 बजकर 39 मिनट से 05 बजकर 28 मिनट तक
  • लाभ-उन्नति मुहूर्त 10 बजकर 41 मिनट से 12 बजकर 09 मिनट तक
  • अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त 12 बजकर 09 मिनट से 01 बजकर 37 मिनट तक।

पंचांग गणना के आधार पर, चूंकि पूर्णिमा का उदय और चंद्र दर्शन 6 अक्टूबर को होगा, इसलिए इस साल शरद पूर्णिमा का पर्व 06 अक्टूबर को मनाया जाएगा. 6 अक्टूकर की रात को ही चंद्रमा की अमृत वर्षा करने वाली रोशनी में खीर रखने की परंपरा निभाई जाएगी.

हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 06 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर होगी। वहीं, इसका समापन अगले दिन यानी 07 अक्टूबर को सुबह को 09 बजकर 16 मिनट पर होगा।1

शरद पूर्णिमा का महत्व

शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस तिथि पर रात के समय चंद्रमा की चांदनी में खीर या दूध रखने से वह अमृत के समान हो जाता है। यह खीर प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से रोगों से मुक्ति मिलती है और निरोगी काया प्राप्त होती है।

इस तिथि पर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा का विधान है, जिससे धन-धान्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

शरद पूर्णिमा पूजा विधि

  • शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं।
  • यह अश्विन महीने की पूर्णिमा तिथि पर मनाई जाती है।
  • मान्यता है कि इस रात को चंद्रमा अपनी पूरी तेज और छः (16) कलाओं से कीर्ति लेता है।
  • वहीं कई स्थानों पर इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि कृष्णलीला (रास-लीला) की कथाएँ इस रात से जुड़ी हैं।

धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व

  1. अमृत वर्षा की मान्यता
    शास्त्रों में कहा गया है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अमृत की किरणें धरती पर भेजता है। ऐसे में रात भर चाँद की रोशनी में रखा कोई पात्र (दूध, खीर आदि) अमृत तुल्य हो जाता है।
  2. मां लक्ष्मी का आगमन
    कोजागरी पूर्णिमा नामक यह रात वैसे समझी जाती है कि माँ लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं और जाग्रत भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। इसलिए इस रात जागरण और भजन-कीर्तन की परंपरा है।
  3. चंद्र पूजा एवं आराधना
    चंद्र देव को अर्घ्य, पूजा और भोग अर्पण करने की मान्यता है। बहुत से लोग इस दिन चंद्र दर्शन कर मन की शांति प्राप्त करते हैं।
  4. व्रत और तपस्या का अवसर
    इस दिन उपवास रखने और धार्मिक साधना करने से मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि माना जाता है।
  5. पूर्णिमा

व्रत कथा / पौराणिक कथा

शरद पूर्णिमा की व्रत कथा बहुत लोकप्रिय है। उदाहरण के लिए:

एक गाँव में एक साहूकार रहता था, जिसकी दो बेटियाँ थीं। दोनों पूर्णिमा व्रत करती थीं, पर बड़ी बहन ने अधिक श्रद्धा एवं नियमपूर्वक व्रत किया। वहीं छोटी बहन ने इसे हल्के में लिया। अंततः बड़ी बहन को शुभ परिणाम मिला।

इसके अलावा कई स्थानों पर यह भी कहा जाता है कि इस व्रत से जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं, संतान की प्राप्ति होती है, और समृद्धि आती है।

पूजा-विधि और शुभ मुहूर्त

पूजा विधि (Puja Vidhi)

  1. सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करें।
  2. पूजा स्थान पर लाल या सफेद कपड़ा बिछाएँ। माता लक्ष्मी या चंद्र देव की प्रतिमा / चित्र रखें।
  3. पूजा में निम्न सामग्रियाँ शामिल करें: पुष्प, धूप, दीप, गुलाल, अक्षत, इत्र, फलों का नैवेद्य आदि।
  4. माता लक्ष्मी का जाप तथा चालीसा या स्तोत्र पाठ करें।
  5. भोजन (भोग) में खीर तैयार करें और इसे चाँद की रोशनी में रखकर अर्पित करें।
  6. रात में जागरण, भजन-कीर्तन या कथा-पाठ करें।
  7. व्रत कथा सुनने के बाद ही व्रत खोलें।

शुभ मुहूर्त

पूजा एवं अर्घ्य देने के लिए शुभ मुहूर्त चुनना अच्छा माना जाता है।
— ग्रहण से प्रभावित होने पर पूजा और भोग ग्रहण के बाद करना चाहिए।
— यदि ग्रहण हो रहा हो, तो खीर रखने आदि क्रियाएँ ग्रहण काल से पहले या बाद में करें।

(आप अपने उस वर्ष की तिथियों का शुभ मुहूर्त अपने ब्लॉग में अपडेट कर सकते हैं।)

क्या करें & क्या न करें

क्या करें

  • शुद्ध और सात्विक आहार लें — दूध, फल, हल्का भोजन।
  • चंद्र दर्शन और चाँद को अर्घ्य दें।
  • रात में जागरण करें और भजन-कीर्तन या कथा-संवाद करें।
  • दान करें — अन्न, वस्त्र, सुख-साधन आदि।
  • घर में सफेद या हल्के रंग के वस्त्र पहनें।
  • पीपल वृक्ष के नीचे जल अर्पित करें या दीपक जलाएँ।

क्या न करें

  • तामसिक पदार्थ (मांस, मटन, लहसुन, प्याज आदि) न खाएं।
  • शराब या नशे से दूर रहें।
  • धन का लेन-देन (उधार, वसूली, खरीद-बिक्री) न करें।
  • नकारात्मक विचार न रखें, क्रोध न करें।
  • काले रंग का उपयोग न करें।
  • अशुद्ध जल न लें — जल स्वच्छता का ध्यान रखें।

शरद पूर्णिमा के उपाय एवं लाभ

नीचे कुछ प्रसिद्ध उपाय और उनके लाभ दिए हैं:

उपायविधि / वर्णनलाभ / अपेक्षित परिणाम
दूध या खीर चांदनी में रखनाखीर या दूध को रातभर खुली छत में चाँदनी में रखेंस्वास्थ्य लाभ, अमृत समान प्रभाव
जागरण एवं भजन-कीर्तनपूरी रात जागकर भजन-कीर्तन करनाआध्यात्मिक शांति, भाग्य खुलना
दान करनाजरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, भोजन आदि दान करेंपुण्य प्राप्ति और सकारात्मक ऊर्जा
पीपल जल अर्पणसुबह स्नान के बाद पीपल वृक्ष को जल अर्पित करेंधन-समृद्धि और वास्तुशांति
गाय को खीर खिलानाखीर या दूध गाय को खिलायेंघर में सुख-शांति, बाधाओं का नाश
सफेद वस्त्र धारण करनासफेद या हल्का रंग पहननासकारात्मक ऊर्जा और शांति बढ़ना

इन उपायों को श्रद्धा और अनुशासन से करने से उनका प्रभाव बढ़ जाता है।शरद पूर्णिमा का पर्व हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली माना जाता है। यह दिन मां लक्ष्मी और चंद्रमा की कृपा प्राप्त करने का विशेष अवसर होता है। इस दिन कुछ विशेष उपाय करने से धन, स्वास्थ्य, और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। नीचे दो प्रभावशाली उपाय दिए गए हैं:—✅ उपाय 1: धन वृद्धि हेतु – मां लक्ष्मी का विशेष पूजनक्या करें:1. शरद पूर्णिमा की रात को घर में या पूजा स्थान पर मां लक्ष्मी का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें।2. सफेद वस्त्र पहनें और सफेद फूलों, चावल, और मिश्री से पूजन करें।3. मां लक्ष्मी को खीर (दूध और चावल से बनी) का भोग लगाएं और यह प्रार्थना करें:> “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” – इस मंत्र का 108 बार जाप करें।4. भोग की खीर को रात भर चंद्रमा की चांदनी में रखें और सुबह परिवार सहित उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।लाभ: यह उपाय धन वृद्धि, समृद्धि और कर्ज मुक्ति में सहायक होता है।—✅ उपाय 2: चंद्रमा से मानसिक शांति और स्वास्थ्य लाभ पाने हेतुक्या करें:1. शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की रोशनी में कुछ समय ध्यान लगाएं। शांत वातावरण में बैठकर गहरी सांस लें और छोड़ें।2. चांदनी में बैठकर “ॐ चंद्राय नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें

गुरु गोचर 2025 प्रभाव . राशिफल एवं उपाय

गुरु गोचर

वर्ष 2025 के दौरान देवगुरु बृहस्पति मई के महीने में मिथुन राशि में गोचर करेंगे। 19 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12:57 बजे बृहस्पति महाराज मिथुन राशि से निकलकर चंद्रमा के स्वामित्व वाली कर्क राशि में प्रवेश करेंगे जिसमें वह अपनी उच्च अवस्था में होते हैं और इसी कर्क राशि में 11 नवंबर 2025 को सायंकाल 6:31 बजे बृहस्पति महाराज वक्री हो जाएंगे और फिर वक्री अवस्था में 4 दिसंबर 2025 को रात्रि 8:39 बजे मिथुन राशि में एक बार फिर प्रवेश करेंगे। इस प्रकार वर्ष 2025 के दौरान देवगुरु बृहस्पति वृषभ राशि से निकलकर मिथुन राशि, फिर मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि और फिर कर्क राशि से निकलकर वक्री अवस्था में मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे।

बृहस्पति महाराज एक शुभ ग्रह हैं जो जातक के जीवन में शुभता लेकर आते हैं। यह हमें सामाजिक मान्यताओं, धर्म अध्यात्म से जोड़ते हैं और हमारे अंदर धर्म की वृद्धि करते हैं। यह हमें सही गलत का पाठ पढ़ाते हैं और बताते हैं कि जीवन में हमें अपने संस्कारों और संस्कृति का संयोजन रखते हुए जीवन में अच्छा सामंजस्य रखना चाहिए जिससे किसी भी प्रकार की समस्या का सामना करने के लिए हम तत्पर रह सकें। गुरु गोचर 2025 के इस विशेष लेख में आप यह जानेंगे कि बृहस्पति गोचर 2025 का आपकी राशि के अनुसार आपके जीवन पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ेगा, आपके जीवन के किन विशेष क्षेत्रों पर इस गुरु गोचर का प्रभाव पड़ेगा और आपको किन क्षेत्रों में अच्छे और बुरे प्रभाव मिल सकते हैं। इसके साथ ही आप यह भी जान पाएंगे कि गुरु ग्रह की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए आपको इस वर्ष कौन सा उपाय करना चाहिए। तो चलिए आगे विस्तार से जानते हैं गुरु गोचर 2025 (Guru Gochar 2025) का आपकी राशि के लिए क्या प्रभाव रहेगा।

मेष राशिफल

मेष राशि में गुरु देव भाग्य स्थान यानी नवम भाव और व्यय स्थान यानी द्वादश भाव के स्वामी हैं और मिथुन राशि में बृहस्पति का गोचर होने से यह आपकी राशि से तीसरे भाव में गोचर करेंगे। बृहस्पति के इस गोचर के प्रभाव से आपके अंदर आलस की बढ़ोतरी होगी जिससे आप अपने कामों को टालते रहेंगे और इससे आपको कार्यक्षेत्र में और जीवन के अन्य क्षेत्रों में रुकावटों का सामना करना पड़ेगा इसलिए आपको इन समस्याओं से बचने के लिए अपना आलस्य त्याग कर मेहनत करने पर जोर देना होगा। आप धर्म-कर्म के मामलों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे। धार्मिक यात्राएं बहुत होंगी। मित्रों का सहयोग आपके साथ रहेगा और उनके साथ अच्छी-अच्छी जगह घूमने जाएंगे। आपके भाई – बहनों से आपके संबंध मजबूत होंगे। इससे आपको खुशी महसूस होगी। व्यवसाय में उन्नति के योग बनेंगे। बृहस्पति महाराज की दृष्टि सप्तम भाव, नवम भाव और एकादश भाव पर होने से व्यापार में उन्नति होगी, वैवाहिक जीवन में प्रेम बढ़ेगा, आपसी संबंधों में चली आ रही समस्याएं दूर होंगी, व्यवसाय का विस्तार हो सकता है और आमदनी में अच्छी बढ़ोतरी के योग बनेंगे। सामाजिक दायरे में बढ़ोतरी होगी। समाज में आपका मान सम्मान बढ़ेगा। पिता से संबंध मधुर होंगे। 19 अक्टूबर को जब बृहस्पति कर्क राशि में कुछ समय के लिए आएंगे तो परिवार में खुशियां और कोई पूजा जैसा शुभ कार्य या किसी का विवाह, आदि कार्यक्रम संपन्न हो सकते हैं। उसके बाद दिसंबर के महीने में बृहस्पति वक्री अवस्था में जब तीसरे भाव में जाएंगे तो भाई – बहनों से संबंधों में कड़वाहट बढ़ सकती है और कार्यक्षेत्र में सहकर्मियों का व्यवहार परेशान कर सकता है इसलिए आपको सावधान रहना होगा।उपाय: गुरुवार के दिन उत्तम गुणवत्ता वाला पीला पुखराज अथवा सुनहला रत्न सोने की मुद्रिका में जड़वा का अपनी तर्जनी अंगुली में धारण करें।

वृषभ राशिफल

वृषभ राशि के जातकों के लिए गुरु देव को अष्टम भाव और एकादश भाव का स्वामी माना जाता है और मिथुन राशि में गुरु का गोचर होने से यह आपकी राशि से दूसरे भाव में प्रवेश करेंगे। बृहस्पति के इस गोचर के प्रभाव से आपकी वाणी में गंभीरता रहेगी। लोग आपकी बातों को ध्यान से सुनेंगे और उनको तवज्जो देंगे। लोग आपसे सलाह मांगेंगे। पारिवारिक जीवन में सुख संतुष्टि रहेगी लेकिन धन संचय करने में कुछ समस्याएं आ सकती हैं। हालांकि आप अपनी आमदनी का कुछ हिस्सा बचत योजनाओं में निवेश कर सकते हैं। यहां से बृहस्पति की दृष्टि छठे भाव, आठवें भाव और दसवें भाव पर रहेगी जिससे पैतृक व्यवसाय में उन्नति होगी। आप अपने परिवार के साथ व्यवसाय करते हैं तो विशेष उन्नति प्राप्त होने के योग बनेंगे। नौकरी करने वाले जातकों को भी उत्तम लाभ के योग बनेंगे। आप धर्म – कर्म तो करेंगे, ससुराल पक्ष से संबंध मजबूत होंगे और उनसे धन लाभ और अनेक प्रकार की मदद मिल सकती है। विरोधियों से आपको कोई कष्ट नहीं होगा। अक्टूबर के महीने में जब बृहस्पति महाराज कर्क राशि में जाएंगे तो आपके तीसरे भाव को प्रभावित करेंगे जिससे धार्मिक यात्राओं के योग बनेंगे और परिवार के सदस्यों का सहयोग और प्रेम मिलेगा। कार्यक्षेत्र में स्थिति अच्छी होगी लेकिन दिसंबर के महीने में जब वक्री अवस्था में 4 तारीख को बृहस्पति दोबारा मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे तो वाणी की परेशानी आपको कार्यों में असफलता दिला सकती है। परिवार में कुछ असंतुलन हो सकता है और धन संचित करने में समस्या हो सकती है। घर में किसी का जन्म हो सकता है अथवा किसी का विवाह भी हो सकता है।

उपाय

आपको गुरुवार के दिन पीपल वृक्ष को छुए बिना जल अर्पित करना चाहिए।

मिथुन राशिफल

मिथुन राशि के लिए गुरु देव सप्तम भाव और दशम भाव के स्वामी ग्रह हैं। मिथुन राशि में गुरु का गोचर आपके लिए विशेष रूप से प्रभावशाली रहेगा क्योंकि यह आपकी ही राशि में गोचर करेंगे। यहां उपस्थित देवगुरु बृहस्पति की दृष्टि आपके पंचम भाव, सप्तम भाव और नवम भाव पर होगी जिससे संतान से संबंधित सुखद समाचारों के प्राप्ति होगी। यदि आप संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं तो संतान प्राप्ति का सपना पूरा हो सकता है। विद्या अध्ययन करने में सफलता मिलेगी। शिक्षा में मनचाहे परिणागुरुवार के दिन किसी मंदिर में चने की दाल का दान करें।म मिलेंगे और आपका मन पढ़ने के लिए करेगा। विवाह के योग बनेंगे। यदि आप अविवाहित हैं तो आपका विवाह हो सकता है। विवाहित जातकों के वैवाहिक जीवन की समस्याओं में कमी आएगी और आपसी सामंजस्य बेहतर बनेगा जिससे वैवाहिक जीवन का सुख मिलेगा। व्यापार में उत्तम उन्नति के योग बनेंगे। समाज के रसूखदार और इज्जतदार लोगों से आपकी मेल मुलाकात होगी जिससे आपको व्यापार में अच्छा लाभ और सामाजिक तौर पर उन्नति मिलेगी। धार्मिक कामों में आपको सफलता मिलेगी। आपका भाग्य उन्नति करेगा और आपकी परेशानियों में कमी आएगी। अक्टूबर के महीने में बृहस्पति महाराज दूसरे भाव में जाकर धन संबंधित समस्याओं को दूर करेंगे, तब धन संचित करने में लाभ देंगे और आपके कार्यों में और अधिक सफलता के योग बनाएंगे। दिसंबर के महीने में वक्री अवस्था में आपकी राशि में बृहस्पति का आना स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है तथा वैवाहिक संबंधों और व्यापार में उतार-चढ़ाव की स्थिति का योग बना सकता है।

उपाय –

गुरुवार के दिन किसी मंदिर में चने की दाल का दान करें।

कर्क राशि राशिफल

कर्क राशि के जातकों के लिए गुरु महाराज छठे भाव और नवम भाव के स्वामी हैं। गुरु गोचर 2025 के अनुसार यह आपकी राशि से द्वादश भाव में प्रवेश करेंगे। इस प्रकार बृहस्पति का द्वादश भाव में जाना आपके अच्छे कार्यों में धन खर्च करने की प्रवृत्ति को बढ़ाएगा। आप पूजा – पाठ, धर्म, आध्यात्मिक तीर्थ यात्राओं और अच्छे कार्यों पर तथा समाज के हित में अनेक अच्छे कार्य करेंगे और उन पर धन खर्च करेंगे। इससे न केवल आपको मानसिक संतुष्टि मिलेगी बल्कि समाज में भी आपको सम्मानित दृष्टि से देखा जाएगा। धार्मिक यात्राओं और लंबी यात्राओं के प्रबल योग बनेंगे। आप यदि दिल से कोशिश कर रहे हैं तो आपको विदेश जाने में भी सफलता मिलेगी और आप विदेश गमन कर सकते हैं। इस दौरान आपको अपने स्वास्थ्य का ध्यान देना होगा। वसा जनित समस्याएं परेशान कर सकती हैं या उदर रोग भी पीड़ित कर सकते हैं। बृहस्पति महाराज की दृष्टि आपके चतुर्थ भाव, छठे भाव और अष्टम भाव पर होगी जिससे कुछ खर्च बढ़ेंगे। परिवार के सुख संसाधनों में बढ़ोतरी होगी। पारिवारिक सामंजस्य बढ़ेगा और आप घरेलू मामलों में प्रसन्नता महसूस करेंगे। ससुराल से भी अच्छी खबरें मिलेंगी। अक्टूबर में जब बृहस्पति महाराज आपकी राशि में प्रवेश करेंगे तो आपके लिए सोने पर सुहागा का समय होगा। आपको उत्तम शिक्षा, उत्तम धन, संतान, वैवाहिक जीवन, व्यापार और भाग्य, सभी में अच्छे परिणाम मिलेंगे तथा भाग्य आपको राजयोग सामान परिणाम प्रदान करेगा। दिसंबर में वक्री अवस्था में बृहस्पति द्वादश भाव में आने से स्वास्थ्य समस्याओं और खर्चों को बढ़ा सकते हैं।

उपाय

गुरुवार के दिन भगवान श्री हरि विष्णु जी की उपासना करें।

सिंह राशि राशिफल

सिंह राशि के जातकों के लिए गुरु बृहस्पति आपके पंचम भाव और अष्टम भाव के स्वामी हैं। गुरु गोचर 2025 के अनुसार बृहस्पति महाराज आपकी राशि से एकादश भाव में प्रवेश करेंगे। यह आपके लिए अच्छी सफलता का समय होगा। आर्थिक चुनौतियां समाप्त होने लगेंगी और धन प्राप्ति का रास्ता सुगम होगा। आपके पास अच्छी आमदनी आने लगेगी। धन से जुड़ी समस्याएं दूर होंगी। वहां बैठे बृहस्पति महाराज की दृष्टि आपके तीसरे भाव, पंचम भाव और सप्तम भाव पर होगी जिससे अविवाहित जातकों के विवाह के योग बनेंगे। प्रेम संबंधों में प्रगाढ़ता आएगी। संतान की प्रगति होगी। आप संतान प्राप्ति की इच्छा करते हैं तो संतान की प्राप्ति भी हो सकती है। शिक्षा में आपको उत्तम सफलता मिलेगी। अचानक से धन लाभ होने का योग बनेगा। किसी तरह की संपत्ति, जो किसी विरासत में मिले, आपको प्राप्त हो सकती है। गुप्त धन प्राप्त हो सकता है। भाई – बहनों के लिए भी यह समय अनुकूल रहेगा और उनसे आपके संबंध मधुर बनेंगे। अक्टूबर में जब बृहस्पति महाराज द्वादश भाव में कर्क राशि में गोचर करेंगे तो शारीरिक समस्याओं को बढ़ाएंगे। आपके खर्चों में बढ़ोतरी करेंगे और दिसंबर में जब वक्री अवस्था में एकादश भाव में आएंगे तो धन प्राप्ति के लिए आपको कठिन प्रयास करने पड़ेंगे। मन की इच्छा पूर्ति में कुछ विलंब हो सकता है।

उपाय

गुरुवार के दिन अपने मस्तक पर हल्दी अथवा केसर का तिलक लगाएं।

कन्या राशि राशिफल

कन्या राशि के जातकों के लिए गुरु बृहस्पति चतुर्थ भाव और सप्तम भाव के स्वामी हैं। मिथुन राशि में गुरु गोचर 2025 के दौरान बृहस्पति ग्रह आपकी राशि से दशम भाव में प्रवेश करेंगे। इस दौरान आपको कार्यक्षेत्र में कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। आप अति आत्मविश्वास का शिकार भी हो सकते हैं जिससे बनते हुए काम अटक सकते हैं। आपको कार्य क्षेत्र में समझदारी और चतुराई से काम लेना चाहिए। जो कार्य आपको ना आता हो, उसकी जिम्मेदारी लेना सीखें और उस काम को सीख कर आगे बढ़ें। पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए आपको आगे आना होगा क्योंकि यह समय आपकी जिम्मेदारी निभाने का समय होगा। यहां से बृहस्पति महाराज आपके दूसरे भाव, चतुर्थ भाव और छठे भाव को देखेंगे जिससे धन संचय करने के लिए आपका प्रयास बढ़ेगा। आप कोशिश करेंगे कि ज्यादा से ज्यादा धन का संचय कर सकें। पारिवारिक संबंधों को मधुर बनाने के लिए भी आप अपनी ओर से कोई कमी बाकी नहीं रखेंगे। माता-पिता के स्वास्थ्य में अच्छे सुधार देखने को मिलेंगे। परिवार के लोगों में आपसी प्रेम और स्नेह की भावना रहेगी। विरोधी पक्ष से आपको कोई समस्या नहीं होगी। अक्टूबर के महीने में बृहस्पति महाराज आपके एकादश भाव में प्रवेश करेंगे तो आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। वैवाहिक संबंधों में प्रगाढ़ता आएगी और प्रेम संबंध मधुर बनेंगे। संतान का सुख मिलेगा। वक्री अवस्था में दिसंबर में बृहस्पति महाराज एक बार फिर से दशम भाव में आएंगे तो उस दौरान आपको कार्यक्षेत्र में बहुत सावधानी से काम करने की आवश्यकता पड़ेगी।

उपाय

आपको गुरुवार के दिन देसी घी किसी मंदिर में ज्योत के लिए देना चाहिए। तुला राशि राशिफल

तुला राशि राशिफल

गुरु गोचर 2025 की बात करें तो तुला राशि के जातकों के लिए गुरु आपके लिए तीसरे भाव और छठे भाव के स्वामी हैं और वर्तमान गोचर काल में आपके नवम भाव में प्रवेश करेंगे। नवम भाव में बृहस्पति का गोचर आपकी धार्मिक मान्यताओं को बढ़ाएगा। आप धर्म-कर्म के कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे। धार्मिक यात्राएं और तीर्थ यात्राएं करेंगे। आपको संघर्ष करने के बाद और ज्यादा प्रयास करने के बाद ही सफलता मिलेगी और तभी आपके काम बनेंगे। जितना ज्यादा आपका प्रयास होगा, उतने अधिक आपको परिणाम प्राप्त होंगे। भाई – बहनों से सहयोग के बाद आपके काम में तेजी आएगी। यहां उपस्थित बृहस्पति महाराज आपकी राशि पर यानी आपके प्रथम भाव, आपके तृतीय भाव और आपके पंचम भाव पर दृष्टि डालेंगे जिससे आपको शिक्षा और उच्च शिक्षा में उत्तम परिणामों की प्राप्ति होगी। संतान का सुख मिल सकता है। संतान प्राप्ति के योग बन सकते हैं। धर्म – कर्म में सफलता मिलेगी और परिवार के लोगों से अच्छा सामंजस्य बढ़ेगा। अक्टूबर में बृहस्पति के दशम भाव में जाने से कार्यक्षेत्र में कुछ उहापोह की स्थिति रहेगी। अति आत्मविश्वास का शिकार होने से बचें। वक्री अवस्था में बृहस्पति दिसंबर में आपके नवम भाव में प्रवेश करेंगे, तब कार्यों में रुकावट आ सकती है और पिताजी को स्वास्थ्य समस्याएं परेशान कर सकती हैं

उपाय आपको गुरुवार का व्रत रखना चाहिए

वृश्चिक राशि राशिफल

चम भाव के स्वामी हैं। गुरु गोचर 2025 आपके लिए अष्टम भाव में होने जा रहा है। इस गोचर को ज्यादा अनुकूल नहीं माना जा सकता है इसलिए आपको सावधानियां रखनी होंगी। आपको कार्यक्षेत्र में कुछ अड़चनों का सामना करना पड़ेगा। बनते हुए काम अटक सकते हैं। भले ही आप धार्मिक कामों में अच्छा अनुभव महसूस करें और आपको अच्छे आध्यात्मिक अनुभव हों लेकिन धन संबंधी मामलों में आपको परेशानी उठानी पड़ सकती है। धन हानि हो सकती है। स्वास्थ्य में गिरावट आपको परेशानी दे सकती है। यहां उपस्थित बृहस्पति महाराज आपके द्वादश भाव, द्वितीय भाव और चतुर्थ भाव पर पूर्ण दृष्टि डालेंगे जिससे ससुराल में कुछ शुभ समाचार सुनने को मिल सकते हैं। आपके खर्चों में बढ़ोतरी होगी। विदेश यात्रा के योग बन सकते हैं। अचानक से कभी-कभी धन प्राप्ति हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त परिवार में ससुराल के लोगों का हस्तक्षेप बढ़ सकता है। अक्टूबर में बृहस्पति महाराज के नवम भाव में गोचर से सभी कार्यों में सफलता मिलेगी। भाग्य मजबूत होगा और आप सफलता प्राप्त करेंगे। नौकरी में बदलाव हो सकता है और दूसरी नौकरी अच्छी पदोन्नति के साथ मिल सकती है। वक्री अवस्था में बृहस्पति महाराज दिसंबर में एक बार फिर अष्टम भाव में प्रवेश करेंगे, उस दौरान धन और स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना होगा।

उपाय

गुरुवार के दिन श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

धनु राशिफल

धनु राशि के जातकों के लिए गुरु महाराज बहुत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह आपकी राशि के स्वामी होने के साथ-साथ आपके चतुर्थ भाव यानी कि आपके सुख भाव के स्वामी भी हैं और बृहस्पति का गोचर आपकी राशि से सप्तम भाव में होगा। यह गोचर आपके वैवाहिक संबंधों के लिए मधुरता का समय लेकर आएगा। आप और आपके जीवनसाथी के मध्य तल्खियां कम होंगी और प्रेम बढ़ेगा। एक – दूसरे के प्रति जिम्मेदारी निभाने का भाव और समर्पण की भावना बढ़ेगी। आप यदि कोई व्यवसाय करते हैं तो उसमें भी आपको अच्छी सफलता प्राप्त हो सकती है। जमीन से जुड़ी कोई पुरानी मुराद पूरी हो सकती है। आप संपत्ति अर्जित कर सकते हैं। यहां से बृहस्पति महाराज आपके एकादश भाव, प्रथम भाव और तृतीय भाव को देखेंगे जिससे यात्राओं से लाभ होगा, आपकी आमदनी में बढ़ोतरी और तेजी देखने को मिल सकती है, आपकी निर्णय लेने की क्षमता अच्छी होगी जिससे आपको फायदा होगा। अक्टूबर में जब बृहस्पति महाराज अष्टम भाव में जाएंगे तो गहन आध्यात्मिक अनुभव मिल सकते हैं। ससुराल से कोई सुखद समाचार मिल सकता है लेकिन स्वास्थ्य में गिरावट आ सकती है। वक्री अवस्था में बृहस्पति महाराज दिसंबर में सप्तम भाव में फिर से आ जाएंगे तब वैवाहिक संबंधों में आपसी सामंजस्य की कमी परेशान कर सकती है और व्यवसाय पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होगी।

उपाय

गुरुवार के दिन से शुरू करके बृहस्पति महाराज के बीज मंत्र का जाप करें।

मकर राशि राशिफल

मकर राशि के जातकों के लिए बृहस्पति महाराज तीसरे भाव और द्वादश भाव के स्वामी हैं और गुरु गोचर 2025 आपकी राशि से छठे भाव में होगा। यह गोचर आपको विशेष रूप से सावधान रहने की और इंगित करता है क्योंकि इस गोचर के दौरान जहां एक तरफ आपको अपनी नौकरी में अच्छे परिणाम मिलेंगे, वहीं आपको स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। पेट और एसिडिटी, अपच, पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याएं और वसा जनित समस्याएं या कोलेस्ट्रोल का बढ़ना परेशानी का कारण बन सकता है। इस दौरान खर्चों में भी बढ़ोतरी होगी। आप अपने आलस्य को छोड़ेंगे, तभी आपको सफलता मिलेगी। विरोधी सिर उठाने की कोशिश कर सकते हैं। हालांकि अक्टूबर में जैसे ही बृहस्पति महाराज सप्तम भाव में प्रवेश करेंगे, इन सभी के ऊपर आप विजय प्राप्त करेंगे। आर्थिक समृद्धि होगी। जीवनसाथी का सहयोग मिलेगा। वैवाहिक संबंधों में प्रगति आएगी। अविवाहित जातकों का विवाह होने के योग बनेंगे। आपको जीवनसाथी का भरपूर सहयोग मिलेगा। आपकी निर्णय लेने की क्षमता भी प्रबल होगी और आपका व्यवसाय भी उन्नति करेगा। नौकरी में भी पदोन्नति के प्रबल योग बनेंगे। इसके बाद वक्री अवस्था में बृहस्पति के दिसंबर के महीने में फिर से छठे भाव में आने से स्वास्थ्य समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत होगी।

उपाय

गुरुवार के दिन गुड़ और चने की दाल से केले के वृक्ष की पूजा करें।

कुम्भ राशिफल

कुम्भ राशि के जातकों के लिए बृहस्पति महाराज दूसरे और ग्यारहवें भाव के स्वामी हैं। गुरु गोचर 2025 आपकी राशि से पंचम भाव में होने जा रहा है। यह गोचर आपको धन लाभ के प्रबल योग देगा। आपकी आर्थिक समृद्धि होगी। योजनाओं में सफलता मिलेगी। मनचाही इच्छापूर्ति होगी। आपकी आमदनी में जबरदस्त इजाफा होने के योग बनेंगे। यदि आप नौकरी में बदलाव चाहते हैं तो वह आपको इस दौरान मिल जाएगी और एक अच्छी नौकरी मिलेगी जिसमें आपको पद और तनख्वाह में वृद्धि की सौगात मिल सकती है। यहां से बृहस्पति महाराज आपके नवम भाव, एकादश भाव और प्रथम भाव को देखेंगे और आपके अंदर उत्तम संस्कारों की बढ़ोतरी करेंगे। आपकी संतान भी संस्कारी बनेगी। शिक्षा में आपको उत्तम सफलता मिलेगी। उच्च शिक्षा में भी आपकी सफलता बढ़ेगी। आप धन कमाने के लिए लालायित रहेंगे। संतान से जुड़ी शुभ सूचनाऐं आपको प्राप्त होंगी। आपकी स्वास्थ्य समस्याओं में कमी आएगी। निर्णय लेने की क्षमता प्रबल होगी। अक्टूबर के महीने में जब बृहस्पति महाराज छठे भाव में आएंगे तो स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा सकते हैं और आपके खर्चों में भी तेजी लेकर आएंगे। उसके बाद जब बृहस्पति महाराज वक्री अवस्था में पंचम भाव में दिसंबर के महीने में आएँगे, तब आपको प्रेम संबंधों में आने वाली समस्याओं के प्रति जागरूक रहना चाहिए और आर्थिक चुनौतियों तथा स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति ध्यान देने की आवश्यकता पड़ सकती है। इस दौरान नौकरी में भी उतार-चढ़ाव‌ आ सकते हैं।

उपाय

गुरुवार के दिन श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करें।

मीन राशि राशिफल

गुरु गोचर 2025 आपके लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण रहेगा क्योंकि गुरु महाराज आपकी राशि के स्वामी होने के साथ-साथ आपके कर्म भाव यानी की दशम भाव के स्वामी भी हैं और गुरु का यह गोचर आपकी राशि से चतुर्थ भाव में होने जा रहा है। बृहस्पति के इस गोचर से जहां एक तरफ पारिवारिक जीवन में कुछ उतार-चढ़ाव देखने को मिलेगा और आपसी सामंजस्य की कमी रहेगी, वहीं आप अपने कार्यक्षेत्र में अच्छी सफलता अर्जित कर पाएंगे। आप खूब मेहनत करेंगे। पूरे ध्यान से अपने काम को करेंगे जिससे आपके प्रदर्शन में सुधार आने के योग बनेंगे। बृहस्पति यहां बैठकर आपके अष्टम भाव, दशम भाव और द्वादश भाव को देखेंगे जिससे खर्चों में बढ़ोतरी होगी। हालांकि खर्च अच्छे कार्यों पर होंगे। आपकी आयु में वृद्धि करेंगे और ससुराल पक्ष के लिए भी अच्छा समय रहेगा। उन्हें इस दौरान कुछ अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। आप काम के सिलसिले में एक शहर से दूसरे शहर जा सकते हैं और काम के सिलसिले में यात्रा के योग बनेंगे। अक्टूबर के महीने में बृहस्पति महाराज जब पंचम भाव में गोचर करेंगे तो वह समय संतान और आर्थिक समृद्धि के लिए अच्छा रहेगा। प्रेम संबंधों में भी सफलता का समय रहेगा। उसके बाद वक्री होकर जब बृहस्पति महाराज एक बार फिर से चतुर्थ भाव में दिसंबर में प्रवेश करेंगे तो पारिवारिक समस्याओं को बढ़ा सकते हैं। परिवार के लोगों के बीच असंतुलन समस्या का बड़ा कारण बन सकता है और आपको कार्यक्षेत्र में भी जबरदआपको गुरुवार के दिन बृहस्पति महाराज के बीज मंत्र का जाप करना चाहिए।स्त मेहनत करनी होगी, तभी जाकर आपको सफलता मिल पाएगी।

उपाय

आपको गुरुवार के दिन बृहस्पति महाराज के बीज मंत्र का जाप करना चाहिए।

पापांकुशा एकादशी: पापों को अंकुश लगाने वाला व्रत

पापांकुशा एकादशी:

हिंदू धर्म में एकादशी तिथि अत्यन्त पवित्र मानी जाती है। शुक्ल या कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को आते हैं एकादशी व्रत, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। इनमें पापों के नाश, आत्मिक शुद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति जैसी विशेष मान्यताएँ जुड़ी हैं। उनमें से एक है पापांकुशा एकादशी — जिसका अर्थ है “पापों को अंकुश लगाने वाली एकादशी”। इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति अपने पूर्व और वर्तमान के पापों को धिक्कारने, उन्हें नियंत्रित करने, और आत्मा की शांति पाने का प्रयत्न करता है

आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 02 अक्टूबर को शाम 07 बजकर 10 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 03

  • पापांकुशा एकादशी कब होती है
  • कथा / इतिहास
  • महत्व
  • पूजा-विधि और नियम
  • शुभ मुहूर्त
  • फलों की प्राप्ति एवं बतायी गयी सावधानियाँ
  • आधुनिक संदर्भ और मनुष्य जीवन में उपयोग

पापांकुशा एकादशी कब होती है?

  • यह आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि होती है।
  • उदाहरण स्वरूप, 2025 में यह व्रत २ अक्टूबर २०२५ की शाम से आरंभ होगा और दिन ३ अक्टूबर को पूरी तरह रहेगा।
  • पारणा (व्रत खोलने) का समय अगले दिन द्वादशी तिथि के प्रारंभ होने से पूर्व निर्धारित शुभ मुहूर्त में होता है।

नाम और अर्थ

पापांकुशा” शब्द दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है:

  • पाप = बुरे कर्म, पाप
  • अंकुश = नियंत्रण करने वाला, टोक, काबू, अंकुश

इस प्रकार पापांकुशा = “वह एकादशी जो पापों को अंकुश लगाती है, पापों को नियंत्रित करती है या उन्हें समाप्त करने में सहायक है।”

पौराणिक कथा

विभिन्न ग्रंथों और समाज में सुनाई जाने वाली कहानियों में कुछ इस प्रकार की कथा मिलती है:

  1. एक कथा है कि राजा युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि किस व्रत से समस्त पाप धुल जाते हैं। तब भगवान ने पापांकुशा एकादशी का वर्णन किया।
  2. एक दूसरी कथा है ‘कृधना’ नामक व्यक्ति या “शिकार करने वाला” (hunter) की, जिसने जीवन में अनेक पाप किए थे। अन्त समय में उसे भय हुआ कि उसके पापों का परिणाम क्या होगा। तब ऋषि ने उसे यह व्रत रखने की सलाह दी। उसने भक्तिपूर्वक व्रत किया, भगवान विष्णु की शरण ली, और उसके पाप नष्ट हुए।
  3. कुछ कहानियों में यह बताया जाता है कि वनवास से लौटने के बाद भगवान राम और उनके भाई भरत का मिलाप इसी एकादशी तिथि को हुआ था। इस घटना के कारण इस तिथि को और अधिक धार्मिक महत्त्व प्राप्त हुआ।
  4. ग्रंथों में यह भी वर्णित है कि इस एकादशी व्रत का पुण्य सूर्य‑यज्ञ (सूर्य यज्ञ) और अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक गुणदायी है।

महत्व और लाभ

पापांकुशा एकादशी के महत्व एवं लाभ बहुत विस्तृत हैं:

विषयलाभ / महत्त्व
पापों से मुक्तिइस व्रत को करने से पिछले पापों से मुक्ति मिलती है। जो पूर्वजों (पितृ, मातृ पक्ष) पर पड़े दोष हों, वे भी कम होते हैं।
आध्यात्मिक शुद्धिआत्मा शुद्ध होती है। मन, वचन, कर्म त्रुटियाँ सुधरने लगती हैं। आत्मिक उन्नति होती है।
मोक्ष की प्राप्तिजो सच्चे मन से व्रत करता है, मोक्ष या नर्क से मुक्ति पाने में समर्थ होता है।
ईश्वर की कृपाविष्णु भगवान की कृपा प्राप्त होती है। भक्त को आशीर्वाद मिलता है—स्वास्थ्य, सफलता, सौभाग्य, समृद्धि।
कर्मों पर नियंत्रणव्रत के नियमों से व्यक्ति अपने अहंकार, लोभ, द्वेष आदि दोषों को नियंत्रित करना सीखता है।
दान‑पुण्य का महत्वइस दिन दान देने, सेवाएँ करने से पुण्य गुण बढ़ जाते हैं।

पूजा‑विधि एवं

व्रत से पूर्व तैयारियाँ (दशमी दिन / व्रत से एक दिन पहले)

  • स्वच्छता: व्रत से एक दिन पहले घर और पूजा स्थल की सफाई की जानी चाहिए।
  • भोजन: रात के भोजन में सरल और हल्का आहार लेने का प्रयास करें। किसी प्रकार की भारी, तामसिक भोजन जैसे मांसाहार, प्याज़, लहसुन आदि से परहेज करें।
  • मन तैयारी: मन को शांत रखें, सत्संग सुनें, भगवान विष्णु के नाम का स्मरण करें। परमात्मा की भक्ति भाव से व्रत की भावना रखें।

व्रत दिन की विधि

  1. ब्रహ्म मुहूर्त में उठना (सवेरे बहुत जल्दी): प्रातः‑स्नान करें (गंगा स्नान कर सकते हों यदि संभव हो)।
  2. पूजा सामग्री तैयार करें: भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र, कलश, फूल (विशेषकर पीले फूल), तुलसी के पत्ते, दीप‑दीया, अगरबत्ती, पंचामृत आदि।
  3. प्रार्थना और मंत्र‑उच्चारण: ‘विष्णु सहस्रनाम’ या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” जैसे मंत्रों का जप करना विशेष फलदायी माना गया है।
  4. भजन‑कीर्तन / पाठ: भागवद पुराण, विष्णु पुराण आदि ग्रंथों से व्रतकथा सुनना/पढ़ना। भजन‑कीर्तन से मन को भक्ति में लगाना।
  5. उपेक्षा / त्याग: मांस­भक्षण, अंडा, धूम्रपान, मद्यपान, तामसिक भोजन, कामुकता, झूठ, द्वेष आदि मानसिक और शारीरिक दोषों से परहेज करना।

व्रत पारण

  • व्रत पारणा दिन, अर्थात द्वादशी तिथि में निर्धारित शुभ मुहूर्त में तोड़ा जाता है।
  • पारण करने से पहले ब्राह्मणों को भोजन और दान देना सर्वोत्तम माना जाता है।
  • पारण का समय प्रातः प्रथम शुभ मुहूर्त में या द्वादशी के प्रथम भाग में चुनने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

शुभ मुहूर्त एवं समय

व्रत और पारण के समयों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। ये समय स्थान और पंचांग के अनुसार बदलते हैं, लेकिन सामान्यतः:

उपवास के प्रकार

  • निराहार (Nirjala): कुछ लोग पानी तक का त्याग करते हुए पूर्ण उपवास रखते हैं।
  • आंशिक उपवास: केवल फल‑फूल, दूध, पानी आदि सेवन किया जाए; अनाज, दाल‑पulses, तामसिक भोजन से परहेज।

क्या देना चाहिए / दान‑पुण्य

दान और पुण्य की गतिविधियाँ इस दिन विशेष महत्व रखती हैं:

  • भोजन दान, वस्त्र दान, वस्तुएँ जैसे जूते-चप्पल, छाता आदि देना शुभ माना जाता है।
  • ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराना।
  • तुलसी वृक्ष, पीले फूल, प्रसाद इत्यादि का भक्तिपूर्वक उपयोग।

सावधानियाँ / आम गलतियाँ

  • व्रत करते समय अहंकार, लोभ, क्रोध, द्वेष, झूठ बोलना आदि मानसिक पापों से बचना चाहिए। सिर्फ बाह्य व्रत करना पर्याप्त नहीं।
  • उपवास को एक सामाजिक दिखावा न बनने दें; मन की शुद्धता और श्रद्धा होने चाहिए।
  • यदि स्वास्थ का कोई कारण हो (जैसे रोग, उम्र, आदि), तो हल्का व्रत रखना चाहिए; बेहतोक्तु व्रत स्वास्थ्य को नुकसान न पहुंचाए।
  • पारण समय न चूके — यदि द्वादशी तिथि में उचित समय में पारण नहीं हो सके, व्रत अधूरा माना जाता है।

आधुनिक संदर्भ में पापांकुशा एकादशी

आज के जीवन‑शैली में जहाँ व्यस्तता, तनाव, अहंकार, काम, धंधा, सोशल मीडिया आदि अनेक चीजें व्यक्ति की आत्मा और मन को विचलित करती हैं, पापांकुशा एकादशी निम्नलिखित रूप से उपयोगी है:

  • मन की शांति: ब्रम्ह मुहूर्त में उठ कर पूजा‑आराधना से मन शांत रहता है।
  • आत्मिक स्वच्छता: स्वयं के आचरण, विचारों, बोलचाल का आत्म‑निरीक्षण करने का अवसर मिलता है।
  • नियमितता व अनुशासन: व्रत, संयम, सत्संग आदि से जीवन में अनुशासन आता है।
  • सेवा भाव एवं दान की भावना: दूसरों की सेवा, दान‑पुण्य करने से सामाजिक और आध्यात्मिक दोनों तरह की पूर्ति होती है।
  • परिवार और समुदाय में जुड़ाव: साथ पूजा‑व्रत करने से पारिवारिक और सामाजिक संबंध मजबूत होते हैं।

संक्षिप्त निष्कर्ष

पापांकुशा एकादशी न सिर्फ एक व्रत है, बल्कि आत्मा की स्वच्छता, पापों का नाश, ईश्वर की कृपा और मोक्ष प्राप्ति का सार है। इस व्रत को श्रद्धा, भक्ति, निष्ठा और नियमों के पालन के साथ करना चाहिए। चाहे व्यक्ति शहर में हो या गाँव में, साधारण जीवन हो या व्यस्त, इस व्रत का अभ्यास जीवन में शांति, संयम और आध्यात्मिक उन्नति सुनिश्चित कर सकता है।


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विजय दशमी 2025: तिथि, महत्व, पूजा‑विधि और शुभ मुहूर्त

विजय दशमी

भारत में त्योहारों का एक अलग ही माहौल होता है। जहाँ रंग‑बिरंगे पुष्प, देवी‑देवताओं की आराधना, रमणीय सजावट और पारिवारिक मिलन‑जुलन की खुशबू घर‑घर तक मीठी यादें छोड़ जाती है—वहीँ ऐसे त्योहार हैं जो न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी हमारे जीवन में गहरी छाप छोड़ते हैं। विजय दशमी (जिसे दussehra, दशहरा, विजयादशमी आदि नामों से जाना जाता है) ऐसा ही एक त्योहार है।


1. विजय दशमी 2025

विजय दशमी 2025 गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी।

पंचांग और दशमी तिथि

  • दशमी तिथि प्रारंभ: 1 अक्टूबर 2025 शाम करीब 7:01 बजे से
  • दशमी तिथि समाप्ति: 2 अक्टूबर 2025 शाम करीब 7:10 बजे तक

विजय दशमी 2025Contact us

विजय मुहूर्त का समय विशेष रूप से शुभ माना जाता है, जब कोई नया कार्य प्रारंभ करना, पूजा करना, व्रत आदि रखना सर्वाधिक फलदायी होता है। 2025 में विजय मुहूर्त की समयावधि इस प्रकार है:

  • लगभग दोपहर 2:05 बजे से 2:53 बजे तक

2. विजय दशमी का इतिहास और पौराणिक कथाएँ

विजय दशमी का मूल अर्थ है “विजय की दशमी”—अर्थात दसवें दिन की विजय। इस दिन बुराई की बुराइयाँ समाप्त होती हैं और अच्छाई की उम्मीद जगती है। इसके पीछे कई पौराणिक कथाएँ और धार्मिक दृष्टिकोण हैं। नीचे प्रमुख कथाएँ और उनके प्रमुख बिंदु:

रामायण की कथा

  • भगवान राम ने रावण को परास्त किया था, जिसने उनकी पत्नी सीता का अपहरण किया था। विजय दशमी उस दिन को याद करती है जब राम ने राजसत्ता एवं धर्म की विजय की थी।
  • रावण दहन (रावण के पुतले जलाने की परंपरा) इसी स्मृति को जीवंत करती है।

देवी दुर्गा की कथा

  • शुभारंभ नौ दिन की नवरात्रि से होता है, जिसमें माँ दुर्गा की नौ रूपों की पूजा होती है। दसवें दिन—विजय दशमी की तिथि—माएँ दुर्गा का महिषासुर नामक बुरे दानव पर विजय का प्रतीक है।

सांस्कृतिक और क्षेत्रीय कथाएँ

  • अलग‑अलग प्रदेशों में विजय दशमी से जुड़ी लोककथाएँ, स्थानीय देवी‑देवताओं की महिमा, देवी‑माता की संघर्ष कथा, राक्षसों की हार, सत्य और धर्म की विजय आदि आदर्शों पर आधारित कहानियाँ मिलती हैं।
  • उदाहरण के लिए, भारतीय लोक कला, रामलीला, अभिनय, कठपुतली, नाटक आदि माध्यम से रामायण की कथाओं का प्रस्तुतीकरण होता है।

3. विजय दशमी का धार्मिक महत्व

यह त्योहार सिर्फ कहानी या उत्सव नहीं है, बल्कि इसमें गहरे आध्यात्मिक, आचार‑संहितात्मक, नैतिक और सामाजिक शिक्षा निहित है। प्रमुख दृष्टिकोण नीचे दिए गए हैं:

  • धर्म की विजय: अधर्म, अन्याय, असत्य आदि पर धर्म, सत्य और न्याय की जीत का प्रतीक।
  • नैतिकता और सिद्धांत: भक्तों को आत्मा‑शुद्धि, संयम, अहिंसा, सत्यता के महत्व का अनुभव होता है।
  • समर्पण और भक्ति: राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान आदि की भक्ति की प्रतिमाएँ हमें समर्पण, निष्ठा और विश्वास की शिक्षा देती हैं।
  • संस्कार और संस्कृति: गीत‑भजन, रामलीला, पारंपरिक नृत्य‑नाटक, मौखिक कथा‑वाचन आदि स्थानीय संस्कृति को संरक्षित व संवर्धित करते हैं।

विजयपूजा‑विधि दशमी की पूजा करने का तरीका क्षेत्र‑अनुसार बदल सकता है, लेकिन कुछ सामान्य विधियाँ लगभग हर जगह समान होती हैं। नीचे पूजा की सामान्य विधि, मनोकामनाएँ और लोकमार्ग दिए जा रहे हैं।

तैयारी

  1. स्वच्छता: पूजा स्थल और घर की सफाई करनी चाहिए। घर में दीपक, फूल, इलायची‑कपूर आदि धन हो।
  2. पूजा सामग्री: दीपक, अगरबत्ती, फूल, पत्ते, सुपारी, नारियल, अक्षत (चावल), लाल या हल्का वस्त्र (आसन), प्रसाद (मीठा, फल आदि), पंचोपचार सामग्री आदि।
  3. पूजा समय से पूर्व स्नान: श्रद्धालु पूजा से पहले स्नान व पूजा‑वस्त्र धारण करें।

पूजा विधि

  1. दीप प्रज्वलित करना: पूजा की शुरुआत दीप या केरोसिन/घी का दीप जलाकर किया जाता है।
  2. प्रार्थना और मंत्रों का जाप: देवी‑देवताओं (राम, दुर्गा आदि) के मंत्र पाठ, रामायण या दुर्गापाठ आदि।
  3. रावण दहन / पुतला जलाना: शाम के समय रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों का दहन किया जाता है, जो बुराई का प्रतीक है।
  4. शस्त्र पूजा / अयुध पूजा: कई स्थानों पर लोग अपने शस्त्र, औजार, वाहन आदि की पूजा करते हैं, यह बताता है कि प्रत्येक शक्ति का सही प्रयोग हो।
  5. भोजन / प्रसाद वितरण: पूजा के बाद भोग अर्पित किया जाता है और प्रसाद का वितरण किया जाता है।

व्रत / उपवास

  • कुछ लोग इस दिन उपवास रखते हैं या शनिवार‑मंगलवार आदि पर विशेष व्रत करते हैं।
  • व्रत रखने वाले भजन‑कीर्तन, कथा‑वाचन आदि कर सकते हैं।

5. शुभ मुहूर्त और पर्व के स्वरूप

जैसा कि पहले बताया गया, विजय मुहूर्त विशेष समय है जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है। इस समय कोई भी नया काम प्रारंभ करना विशेष फलप्रद माना जाता है।

शुभ मुहूर्त 2025 में

  • विजय मुहूर्त: लगभग दोपहर 2:05‑2:53 बजे (IST)
  • अन्य महत्वपूर्ण मुहूर्त: शास्त्र पूजा, शमी पूजा, वाहन पूजा आदि के लिए विशेष समय दिए जाते हैं। उदाहरण स्वरूप, “शमी पूजन मुहूर्त” आदि।

पर्व का स्वरूप

  • नवरात्रि: विजय दशमी से नौ दिन पहले नवरात्रि आरंभ होती है। 2025 में इसे शुरुआत 22 सितंबर से माना जा रहा है।
  • रामलीला: कई स्थानों पर दशहरा आते‑आते रामलीला मंचित होती है।
  • रावण दहन एवं शोभा यात्रा: शहरों‑गाँवों में रावण दहन समारोह, शोभा यात्रा आदि होते हैं।
  • सांस्कृतिक कार्यक्रम: नृत्य, गीत, कथाएँ, लोक नाट्य आदि कार्यक्रम।

6. विजय दशमी का सामाजिक व सांस्कृतिक महत्व

इस त्योहार का असर सिर्फ मंदिरों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज और संस्कृति के अनेक आयामों को जोड़ता है।

  • परिवार और मिलन‑जुलन: लोग अपने घर परिवार से मिलते हैं, बुजुर्गों को प्रणाम करते हैं, पूर्वजों की याद करते हैं और भोजन साथ में करते हैं।
  • स्थानीय व्यापार: बाजार सजते हैं, मिठाइयाँ, वस्त्र, पूजा सामग्री आदि का व्यापार बढ़ता है।
  • पर्यटन और उत्सव: शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में मेले, झूले और आकर्षण‑स्थल सजते हैं।
  • कलाकारों को अवसर: रामलीला आयोजक, रंगकर्मी, शिल्पकार आदि को रोजगार मिलता है।
  • शिक्षा: बच्चों को कहानी‑पठन, रामायण, भारतीय संस्कृति की शिक्षा मिलती है।

7. विजय दशमी से जुड़ी विशेष मान्यताएँ

त्योहार से जुड़ी कुछ मान्यताएँ, लोक विश्वास और रीति‑रिवाज हैं जो समय‑समय पर भिन्न हो सकते हैं:

  • अच्छे विकल्पों की शुरुआत: विजय दशमी पर नया काम (नया व्यापार, नया वाहन, खेतों में नया बीज, भवन निर्माण आदि) करना शुभ माना जाता है।
  • अज्ञान का त्याग: आध्यात्मिक दृष्टि से इस दिन बुराई, अहंकार, झूठ आदि से मुक्ति की प्रेरणा ली जाती है।
  • गृह प्रवेश, वस्त्र पूजन आदि: कई स्थानों पर इस दिन घर या कार आदि की पूजा होती है।
  • विविध व्रत व अनुष्ठान: कुछ लोग व्रत रखते हैं या विशेष विधि से देवी‑देवता की आराधना करते हैं।

8. विजय दशमी 2025: उत्तर भारत (हरियाणा, पंजाब आदि) में विशिष्ट प्रथाएँ

हरियाणा और आसपास के क्षेत्रों में विजय दशमी खास तरीके से मनाई जाती है, जिनमें कुछ स्थानीय अनुष्ठान लाभदायक रहते हैं:

  • रामलीला मंचन: गाँवों में रामलीला बड़े उत्साह से होती है, रावण दहन चौबारे या मैदानों में किया जाता है।
  • शस्त्र पूजा / अस्त्र पूजा: किसानों द्वारा खेत के औजारों की पूजा, हथियारों या कृषि उपकरणों की पूजा होती है।
  • पंडालों में पूजा एवं आरती: कोई‑कोई स्थानों पर दुर्गा पंडाल, देवी‑पूजन आदि प्रस्तुति होती है।
  • मेला‑ठेला: झूले, रामलीला, लोक व्यंजन stalls आदि। स्थानीय मिठाइयाँ, जैसे गुड़‑चावल, घेवर आदि मिल सकती हैं।
  • भोजन का महत्व: त्योहार के दिन विशेष प्रसाद, मीठे व्यंजन और पकवान बनाए जाते हैं।

13. निष्कर्ष

विजय दशमी सिर्फ एक त्योहार नहीं है—यह कहानी, प्रेरणा और मूल्यों की विजय का प्रतीक है। यह त्योहार हमें यह याद दिलाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, सत्य, धर्म और अच्छाई की जीत अवश्य होती है। 2025 में विजयादशमी 2 अक्टूबर को है—इस दिन का सही समय जान, उचित तैयारी करें, मन को पवित्र करें, और अपने परिवार एवं समाज के साथ इस पर्व को पूरी श्रद्धा व आनंद से मनाएँ।

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शारदीय नवरात्रि 2025: पूजा, तिथि, महत्व और अनुष्ठान

प्रस्तावना

भारतवर्ष में नवरात्रि त्योहार का अपना विशेष स्थान है। हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्रि भक्तों के लिए आध्यात्मिक पुनरुत्थान का अवसर लेकर आती हैं। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि 2025 की शुरुआत 22 सितंबर, सोमवार से हो रही है, जो विजयदशमी के बाद समाप्त होगी। इस त्योहार में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है, भक्त व्रत रखते हैं और देवी शक्ति की आराधना करते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं इस बार की नवरात्रि‑तिथि, पूजन विधि, व्रत नियम, देवी रूप,

शारदीय नवरात्रि 2025 की तिथि

समय

  • शारदीय नवरात्रि 2025 22 सितंबर, सोमवार से आरंभ होगी।
  • इसका समापन विजयदशमी के दिन 2 अक्टूबर 2025 को होगा।
  • इस बार एक विशेष बात यह है कि नवरात्रि ९ दिनों की बजाय लगभग १० दिनों की हो रही है, क्योंकि तृतीया तिथि दो दिन रहेगी।

घटस्थापना (कलश स्थापना) मुहूर्त

  • घटस्थापना का प्रथम शुभ मुहूर्त 22 सितंबर की सुबह 6:09 बजे से सुबह 8:06 बजे तक रहेगा।
  • यदि इस समय मुहूर्त न मिल पाये तो अभिजीत मुहूर्त, समय लगभग 11:49 बजे से 12:38 बजे के बीच का है।

नौ दिन और देवी के नौ रूप

शारदीय नवरात्रि में हर दिन माँ दुर्गा के एक अलग रूप की पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन की तिथि, देवी का रूप और उसका विशेष महत्व इस प्रकार है:

दिनतिथिदेवी का रूपमहत्व / शक्ति
दिन 122 सितंबरमाँ शैलपुत्रीपर्वतों की पुत्री, स्थिरता, साहस एवं आंतरिक शक्ति की देवी।
दिन 223 सितंबरमाँ ब्रह्मचारिणीतपस्या, संयम, आध्यात्मिक ज्ञान की देवी।
दिन 324‑25 सितंबर *माँ चंद्रघंटासौम्यता, सुन्दरता, शक्ति और संतुलन की देवी। *तृतीया तिथि दो दिन रहेगी।
दिन 425‑26 सितंबर *माँ कूष्मांडासृष्टि की ऊर्जा की आरंभिकी, रचनात्मकता एवं आनंद की देवी।
दिन 527 सितंबरमाँ स्कंदमातामाँ‑पिता दोनों का पोषण, करुणा एवं माता‑भाव की शक्ति।
दिन 628 सितंबरमाँ कात्यायनीआतंक व बुराई का संहार, वीरता एवं न्याय की देवी।
दिन 729 सितंबरमाँ कालरात्रिअंधकार का नाश, भय से मुक्ति, अत्यंत शक्ति‑स्वरूप।
दिन 830 सितंबरमाँ महागौरीपवित्रता, स्वच्छता, सौम्यता एवं शांति की देवी।
दिन 9 / महानवमी1 अक्टूबरमाँ सिद्धिदात्रीसिद्धियाँ (उल्लेखनीय प्राप्तियाँ): आत्मसिद्धि, ध्यान, वैभव।
विजयदशमी2 अक्टूबरमाँ दुर्गा की विजय और बुराई का विनाश, दशहरा पर्व मनाया जाता है।

* चूँकि तृतीया तिथि इस बार दो दिन रहेगी, तीसरे और चौथे दिन के बीच विशेष नियम हो सकते हैं।

व्रत (उपवास) के नियम और महत्व

शारदीय नवरात्रि में व्रत रखने की परंपरा बहुत प्राचीन है। यह न केवल शरीर को तपाने का माध्यम है, बल्कि मन की शुद्धि, आत्म‑निंयंत्रण और देवी भक्ती की अभिव्यक्ति है।

व्रत का प्रकार

  • पूर्ण व्रत (दिन भर में भोजन न करना)
  • आंशिक व्रत (जलपान / फल‑पानी / एक समय का भोजन)
  • निर्जला व्रत (पूरे दिन और रात बिना जल के)
  • ब्रजब्रत आदि विशेष प्रकार के व्रत – ये स्थान, परंपरा, व्यक्तिगत शारीरिक स्थिति आदि पर निर्भर करते हैं।

व्रत की तैयारी

  • व्रत से पहले शुद्ध स्नान करें, साफ कपड़े पहनें।
  • यदि संभव हो तो घर की पूजा स्थल को अच्छी तरह साफ करें।
  • कलश स्थापना, पूजा सामग्री (फूल, दूर्वा, रंग, पंचामृत, पानी आदि) पहले से तैयार रखें।

व्रत के नियम (Do’s & Don’ts)

करने योग्यन करने योग्य
सात्विक भोजन करें (फल, दूध, अंकुरित अनाज आदि)मांसाहार, मछली, अंडा आदि से परहेज करें
प्याज‑लहसुन से दूर रहेंतंबाकू, मदिरा, अन्य व्यसनों से बचें
पूजा‑पाठ, जप, मंत्र, भजन करेंक्रोध, झूठ, वारणियाँ व्यवहार से दूर रहें
संकल्प करें और उसका पालन करेंअवश्यंभावी कामों में लापरवाही न करें
माता के निवास स्थान या मंदिर जाएँ (संभाव हो तो)अनावश्यक यात्राएँ, समय‑व्यापी काम आदि से बचें, व्रत तोड़ना न करें बिना कारण

व्रत का लाभ

  • मानसिक शांति और संयम व मान‑सन्मान की भावना बढ़ती है।
  • आत्मा‑चेतना, भक्ती भाव और आध्यात्मिक अनुभव होता है।
  • मान्यता है कि माँ दुर्गा इन नौ दिनों में संकट हरने वाली होती हैं, भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

कलश स्थापना (घटस्थापना): विधान और मुहूर्त

कलश स्थापना या घटस्थापना नवरात्रि की शुरुआत होती है। इसे बहुत ही मंगलकारी माना जाता है। घर में या मंदिर में मां दुर्गा की पूजा की शुरुआत घटस्थापना से ही होती है।

घटस्थापना के शुभ मुहूर्त

  • 22 सितंबर, सुबह 6:09 बजे से 8:06 बजे
  • अभिजीत मुहूर्त 11:49 बजे से 12:38 बजे

घटस्थापना की सामग्री

कलश स्थापना के लिए सामान्यत: निम्न सामग्री की आवश्यकता होती है:

  1. एक स्वच्छ कलश (संभव हो तो तांबे, पीतल या मिट्टी का)
  2. जल (पवित्र नदी या नहाये पानी से)
  3. पंचामृत (दूध, दही, घृत, शहद, गूड़)
  4. अक्षत (अक्षत चावल के दाने)
  5. फूल और बेलपत्र / मंदिर पुष्प
  6. नारियल, आम के पत्ते
  7. हल्दी, सिंदूर, कलावा (राखी की तरह लाल धागा)
  8. दीपक (घी या तेल का)
  9. अगरघट या छोटी मिट्टी की मूर्ति हो तो वह भी कलश के ऊपर रखी जाती है

घटस्थापना की विधि

  • मुहूर्त के अनुसार समय निर्धारित करें।
  • कलश रखें, उसमें जल भरें, उसमें पंचामृत डालें।
  • नारियल को आम के पत्तों के साथ कलश के मुंह पर रखें।
  • कलश के चारों ओर अक्षत और फूल चिपकाएँ।
  • कलश को माटी या मिट्टी या लाल कपड़े पर स्थापित करें।
  • ‘ॐ घ­टस्थापना: देवी सम्पूर्ण ग्रहणम्’ इत्यादि मंत्रों के साथ पूजा आरंभ करें।
  • पूजा के पश्चात कलश को मां दुर्गा मंत्रों, आरती और भोग अर्पित कर बंद करें।

नवरात्रि के नौ रंग और शुभ वस्त्र

विभिन्न स्थानों में यह प्रथा है कि नवरात्रि के प्रत्येक दिन एक विशेष रंग पहनता जाए। इससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और देवी की आराधना में विशेष भक्ति का भाव आता है।

नीचे इस वर्ष (2025) के नवरात्रि के रंगों और उनके अर्थ दिए गए हैं:

दिनरंगअर्थ / प्रतीक
दिन 1 (22‑सितंबर)सफेद शुद्धता, शांतिपूर्ण स्वभाव, शैलपुत्री की भक्ति की शुरुआत।
दिन 2लाल शक्ति, उमंग, उत्साह, ब्रह्मचारिणी का भाव।
दिन 3रॉयल ब्लू स्थिरता, बल, चंद्रघंटा से जुड़ी ऊर्जा।
दिन 4पीला आनंद, उज्जवलता, कूष्मांडा की दिव्यता।
दिन 5हरा विकास, शांति, स्कंदमाता की करुणा।
दिन 6ग्रे संतुलन, ज्ञान, कात्यायनी स्वरूप का योग।
दिन 7ऑरेंज साहस, ऊर्जा, कालरात्रि की विकरालता में भी सकारात्मक पक्ष।
दिन 8मोर‑हराअनोखापन, करुणा, महागौरी की शान्ति मिश्रित ऊर्जा।
दिन 9गुलाबी प्रेम, सौहार्द, सामंजस्य, सिद्धिदात्री की कृपा।

नोट: रंग पहनने की प्रथा स्थान और पारिवारिक परंपरा पर निर्भर करती है; यदि कोई रंग संभव न हो तो रोज़ एक ही रंग या मनपसन्द रंग पहनना भी स्वीकार्य है।

पूजा‑विधि और अनुष्ठान

पूजा‑विधि नवरात्रि के दौरान बहुत विविध है, लेकिन कुछ आम नियम और चरण सभी जगह देखे जाते हैं। नीचे एक पूर्ण पूजा‑अनुक्रम दिया गया है जिसे आप अपने घर पर भी कर सकते हैं।

  1. सुबह स्नान एवं शुद्धता
    • पूरे घर और पूजा स्थल की साफ‑सफाई करें।
    • वासनाएं, गंदगी दूर करें।
    • स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  2. घटस्थापना / कलश स्थापना
    • उपर बताए गए शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित करें।
    • पंचामृत, अक्षत, आम के पत्ते, नारियल आदि से पूजन करें।
  3. पूजा सामग्री अरेंज करें
    • देवी प्रतिमा या फोटो रखें।
    • जल, दीपक, दीया, अगरबत्ती, फूल, फल, प्रसाद।
    • कपूर, चीनी, गुड़, चावल आदि सामग्री।
  4. देवी स्वरूपों की पूजा
    • प्रत्येक दिन उस दिन की देवी के साथ सम्बंधित मंत्र, स्तुति पाठ करें।
    • आरती करें।
    • भोग अर्पित करें।
  5. भजन‑कीर्तन एवं मंत्र जाप
    • माँ दुर्गा के स्तोत्र जैसे दुर्गा चालीसा, देवी सहस्त्रनाम आदि।
    • भजन‑कीर्तन करें।
    • जाप करें (यदि संभव हो तो जपमाला से)।
  6. प्रसाद वितरण एवं कन्या पूजन
    • व्रत के बाद मित्र‑परिवार को प्रसाद बाँटें।
    • यदि संभव हो, कन्याओं को आमंत्रित करें, उन्हें शुभ वाणी व भोजन कराएँ — यह पुण्य का अवसर माना जाता है।
  7. आरती एवं समापन
    • शाम को देवी की आरती करें।
    • दीप जलाएँ, अगर हो सके तो विशेष दीपदान करें।
    • व्रत की समाप्ति महानवमी या विजयदशमी के दिन‑दिन परंपरा अनुसार करें।

प्रमुख मुहूर्त, शुभ योग और विशेष संयोग

  • जैसा कि पहले बताया गया, घटस्थापना के लिए सुबह 06:09‑08:06 बजे और अभिजीत मुहूर्त 11:49‑12:38 बजे हैं
  • साथ ही इस वर्ष हस्त नक्षत्र में, ब्रह्म योग, सर्वार्थ सिद्धि योग जैसे शुभ योग बन रहे हैं। ये योग पूजा‑कार्य और भक्ति के लिए अत्यंत अनुकूल माने जाते हैं।

नवरात्रि के दौरान विशेष प्रथाएँ और लोकमान्यताएँ

  • जौ बोना (बार्ली अंकुरित करना): घरों में नवरात्रि के दौरान जौ बोने की प्रथा है। यह कृषि से जुड़ी शुभता और भविष्य की फसल के अच्छे होने की कामना है।
  • घर की साफ‑सफाई और सजावट: फूल, रंगोली, दीप, तोरण आदि सजावट से घर को पवित्र बनाया जाता है।
  • चन्द्रग्रहण और अन्य ग्रह योग: ज्योतिष के अनुसार ग्रहों की स्थिति भी पूजा‑फल, व्रत की सफलता आदि को प्रभावित करती है।
  • भोजन व आहार: व्रत के समय सात्विक भोजन जैसे की फल, दूध, हल्के पकवान आदि। कुछ स्थानों पर विशेष पकवान जैसे फल‑प्याज‑मिल्क‑पूड़ा आदि तैयार किए जाते हैं।

शारदीय नवरात्रि का आध्यात्मिक अर्थ

  • नवरात्रि हमें याद दिलाती है कि जीवन में संतुलन चाहिए — शक्ति और सौम्यता, क्रिया और धैर्य, सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन का संतुलन।
  • यह पर्व हमें आत्म‑निरीक्षण और आत्म‑संयम की शिक्षा देता है।
  • देवी दुर्गा के नौ रूपों में निहित विभिन्न गुण जैसे स्त्री का साहस, दया, प्यारा व्यवहार, धर्म की रक्षा आदि हमें प्रेरित करते हैं।
  • भक्तों का विश्वास है कि इस समय देवी की कृपा से जीवन से भय, दुःख, बाधाएँ दूर होती है

निष्कर्ष

शारदीय नवरात्रि हमारे जीवन में सीधी प्रेरणा है — देवी शक्ति का आदर, आत्मिक सुधार, संयम, भक्ति, तथा सकारात्मक ऊर्जा का विकास। वर्ष 2025 की शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर से शुरू हो रही है, घटस्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह होगा, देवी के नौ स्वरूपों की पूजा होगी और विजयदशमी के दिन पर्व समाप्त होगा। इस नौ‑दिन की यात्रा में व्रत, पूजा‑विधि, रंगों, मंत्रों, भोग आदि से हम माँ की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

आप तैयार हो जाइए इस नवरात्रि में पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ माँ दुर्गा की उपासना करने के लिए। आशा है कि यह ब्लॉग आपको इस पर्व की तैयारी में सहायक होगा। नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ!


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पितृ पक्ष अमावस्या: सर्व पितृ अमावस्या का महत्व, नियम, विधि और लाभ

अमावस्या

पितृ पक्ष एवं अमावस्या की परिभाषा

पितृ पक्ष: हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा के अगले दिन से आश्विन मास की अमावस्या तक चलने वाला लगभग 15–16 दिन का समय है। इस काल में पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण, दान आदि अनुष्ठान किए जाते हैं।

  • अमावस्या: चन्द्रमा की ऐसी तिथि जब चन्द्रमा पूरी तरह अंधकार में होता है, अर्थात् अग्नि‑रोशनी कम होती है। मास के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि यानी अमावस्या पितृ पक्ष का समापन करती है।

सर्व पितृ अमावस्या कब होती है?

पितृ पक्ष अमावस्या
  • इस तिथि को महालया अमावस्या, सर्व पितृ अमावस्या या पितृ मोक्ष अमावस्या भी कहा जाता है।
  • उदाहरण के लिए, 2025 में सर्व पितृ अमावस्या दिनांक 21 सितंबर (रविवार) को है। अमावस्या तिथि की शुरुआत 20 सितंबर की मध्यरात के बाद होती है।

महत्व

सर्व पितृ अमावस्या का धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से कई मायने हैं:

  1. पूर्वजों की आत्मा की शांति
    जिन पितरों का श्राद्ध किसी कारणवश नहीं हो पाया हो, अथवा जिनका नाम‑तिथि अज्ञात हो, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए गए कर्म पूर्वजों को तृप्त करते हैं और उनकी आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाते हैं।
  2. पितृ दोष से मुक्ति
    यदि जन्म कुंडली में पितृ दोष हो, तो इस दिन किए गए अनुष्ठानों से दोष कम होने की मान्यता है।
  3. कुटुम्ब में शांति एवं समृद्धि
    पूर्वजों की कृपा से परिवार में सुख‑समृद्धि, समरसता, स्वास्थ्य और संतोष की वृद्धि होती है। श्रद्धा एवं पुण्य कर्म से गृहस्थ जीवन में सकारात्मक उर्जा आती है।
  4. धार्मिक-अध्यात्मिक अनुशासन
    अपने पूर्वजों को नमन करना, अपने कर्तव्यों को याद रखना, परंपराओं को निभाना — इस तरह की भावनाएँ व्यक्ति के मन एवं आचरण को धर्म‑निरंतर बनाती हैं।

श्राद्ध, तर्पण एवं पिंडदान की विधि

नीचे एक सामान्य विधि है जिसे अपनाया जा सकता है। क्षेत्र, पारिवारिक परंपरा अथवा पुजारी की सलाह से कुछ भिन्नता संभव है।

  1. पूजा की तैयारी
    • स्नान व शुद्ध हो जाना चाहिए।
    • साबुन आदि से पूरी तरह ताजगी हो और शुभ पर्यावरण तैयार हो।
    • पूजा स्थल स्वच्छ हो। चैनल की दिशा की ओर मुख करके बैठना शुभ माना जाता है।
  2. पूजन सामग्री
    • पवित्र जल या तirthजल (नदी, सरोवर आदि)
    • तिल (काले तिल विशेष), पुष्प, कुशा, सुपारी, लौंग‑इलायची आदि सुगंधित सामग्री
    • पवित्र धूप‑दीप, घी या तिल का तेल, दीप लगाने के लिए सामग्री।
  3. पूजा‑विधि (श्राद्ध / तर्पण / पिंडदान) चरण क्रिया प्रथम चरण शुभ मुहूर्त में स्नान, स्वच्छ वस्त्र पहनना। द्वितीय चरण तर्पण – जल्दी सुबह तिल, जल, सुपारी, कुशा आदि से पूर्वजों को तर्पण देना। तृतीय चरण पिंडदान – चावल, जौ या अन्य अनाज से पिंड (छोटी‑छोटी भोजन सामग्री) बनाकर ब्राह्मणों या गरिबों को देना। चतुर्थ चरण भोजन दान, अन्नदान, वस्त्र दान आदि करना। पांचवाँ चरण अंत में पूर्वजों की विदाई या विसर्जन – पूजा समाप्त कर शुभ विचारों के साथ विदाई देना।
  4. मन – भाव और मंत्र
    • श्रद्धापूर्ण मन से पूजा करना चाहिए।
    • “ॐ सर्वपितृ देवताभ्यो नमः” जैसे मंत्रों का उच्चारण लाभदायक कहा गया है।
    • आत्म‑निरीक्षण करना — यदि पूर्वजों से कोई दोष हो गया हो, उससे प्रायश्चित्त करना, क्षमाप्रार्थना करना।

श्राद्ध एवं पिंडदान के शुभ मुहूर्त

  • श्राद्ध के समय में कुछ मुहूर्त विशेष रूप से उत्तम माने जाते हैं जैसे कुतु/Muhurta, रौहिण/Muhurta, अपरान्ह काल आदि।
  • अमावस्या तिथि के आरंभ‑समय और समाप्ति समय से यह निर्धारित होता है कि कौन सा मुहूर्त आपके क्षेत्र में उपयुक्त है।

क्या करें और क्या नहीं करें

क्या करें क्या न करें
सुबह स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।पूजा पूजा के समय अशुद्धता न रखें, गन्दे होंठ या गंदे कपड़े न पहनें।
भोजन और दान करते समय भूखे और निर्धनों को भोजन दें।लहसुन, प्याज आदि तामसिक खाद्य सामग्री न लें।
मन शांत हो, ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध से दूर रहें।झूठ या छल‑छद्म पूर्वजों को न देना।
ब्राह्मणों या धार्मिक विद्वानों को दक्षिणा देना।पूजा‑विधि को अधूरा या अनपढ़‑पढ़ा करके करना।
पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और धन्यवाद भाव बनाए रखें।समय की अनदेखी या गलत मुहूर्त में कार्य करना।

पितृ पक्ष अमावस्या से जुड़े कुछ विशेष उपाय (Remedies / Upayas)

  • दान करना: अनाज, वस्त्र, सफेद वस्त्र, तिल, काले तिल का दान।
  • वृक्षारोपण: किसी वृक्ष की सेवा करना और पौधा लगाना।
  • ब्राह्मणों को भोजन कराना, उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेना।
  • अगर समय मिले तो तीर्थयात्रा करना या पवित्र नदियों में स्नान करना।

पितृ पक्ष अमावस्या: व्यक्तिगत अनुभव एवं सामाजिक योगदान

  • भावनात्मक भाग: अपने पूर्वजों को याद करना, उनके योगदान को समझना और उनकी यादों को सम्मान देना, यह भी एक प्रकार की आत्म‑चिंतन की प्रक्रिया है।
  • सामाजिक भाग: गांवों तथा परिवारों में एकता बनी रहती है। मिलजुल कर श्राद्ध, भोजनदान आदि से समाज में सहयोग की भावना बढ़ती है।
  • पारंपरिक ज्ञान: हमारे धर्मग्रंथों, पुराणों में इस तिथि का वर्णन है। यह हमारी संस्कृति और विरासत को जीवित रखता है।

निष्कर्ष

पितृ पक्ष अमावस्या हिन्दू धर्म की उन पवित्र परंपराओं में से एक है जो हमें हमारे पूर्वजों से जोड़ती हैं। न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक‑नैतिक और आत्म‑चिंतन की दृष्टि से भी यह तिथि महत्वपूर्ण है। इस दिन श्रद्धा, भक्ति, और नैतिकता से किए हुए कर्म हमें भी सुकून देते हैं और पारिवारिक वातावरण में सकारात्मक बदलाव लाते हैं।

अगर आप इस लेख को पढ़ रहे हैं, तो इस अमावस्या पर समय निकालिए अपने पूर्वजों के लिए। उनकी आत्मा की शांति के लिए कुछ पूजा‑कार्य करें, दान करें, अभिप्रेरणा लें, और अपने कर्तव्यों को याद रखें। साथ ही, इस लेख को शेयर करें ताकि और लोग भी इस महत्वपूर्ण दिन की जानकारी पा सकें।