पितृ पक्ष एवं अमावस्या की परिभाषा
पितृ पक्ष: हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा के अगले दिन से आश्विन मास की अमावस्या तक चलने वाला लगभग 15–16 दिन का समय है। इस काल में पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण, दान आदि अनुष्ठान किए जाते हैं।
- अमावस्या: चन्द्रमा की ऐसी तिथि जब चन्द्रमा पूरी तरह अंधकार में होता है, अर्थात् अग्नि‑रोशनी कम होती है। मास के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि यानी अमावस्या पितृ पक्ष का समापन करती है।
सर्व पितृ अमावस्या कब होती है?

- इस तिथि को महालया अमावस्या, सर्व पितृ अमावस्या या पितृ मोक्ष अमावस्या भी कहा जाता है।
- उदाहरण के लिए, 2025 में सर्व पितृ अमावस्या दिनांक 21 सितंबर (रविवार) को है। अमावस्या तिथि की शुरुआत 20 सितंबर की मध्यरात के बाद होती है।
महत्व
सर्व पितृ अमावस्या का धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से कई मायने हैं:
- पूर्वजों की आत्मा की शांति
 जिन पितरों का श्राद्ध किसी कारणवश नहीं हो पाया हो, अथवा जिनका नाम‑तिथि अज्ञात हो, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए गए कर्म पूर्वजों को तृप्त करते हैं और उनकी आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाते हैं।
- पितृ दोष से मुक्ति
 यदि जन्म कुंडली में पितृ दोष हो, तो इस दिन किए गए अनुष्ठानों से दोष कम होने की मान्यता है।
- कुटुम्ब में शांति एवं समृद्धि
 पूर्वजों की कृपा से परिवार में सुख‑समृद्धि, समरसता, स्वास्थ्य और संतोष की वृद्धि होती है। श्रद्धा एवं पुण्य कर्म से गृहस्थ जीवन में सकारात्मक उर्जा आती है।
- धार्मिक-अध्यात्मिक अनुशासन
 अपने पूर्वजों को नमन करना, अपने कर्तव्यों को याद रखना, परंपराओं को निभाना — इस तरह की भावनाएँ व्यक्ति के मन एवं आचरण को धर्म‑निरंतर बनाती हैं।
श्राद्ध, तर्पण एवं पिंडदान की विधि
नीचे एक सामान्य विधि है जिसे अपनाया जा सकता है। क्षेत्र, पारिवारिक परंपरा अथवा पुजारी की सलाह से कुछ भिन्नता संभव है।
- पूजा की तैयारी
- स्नान व शुद्ध हो जाना चाहिए।
- साबुन आदि से पूरी तरह ताजगी हो और शुभ पर्यावरण तैयार हो।
- पूजा स्थल स्वच्छ हो। चैनल की दिशा की ओर मुख करके बैठना शुभ माना जाता है।
 
- पूजन सामग्री
- पवित्र जल या तirthजल (नदी, सरोवर आदि)
- तिल (काले तिल विशेष), पुष्प, कुशा, सुपारी, लौंग‑इलायची आदि सुगंधित सामग्री
- पवित्र धूप‑दीप, घी या तिल का तेल, दीप लगाने के लिए सामग्री।
 
- पूजा‑विधि (श्राद्ध / तर्पण / पिंडदान) चरण क्रिया प्रथम चरण शुभ मुहूर्त में स्नान, स्वच्छ वस्त्र पहनना। द्वितीय चरण तर्पण – जल्दी सुबह तिल, जल, सुपारी, कुशा आदि से पूर्वजों को तर्पण देना। तृतीय चरण पिंडदान – चावल, जौ या अन्य अनाज से पिंड (छोटी‑छोटी भोजन सामग्री) बनाकर ब्राह्मणों या गरिबों को देना। चतुर्थ चरण भोजन दान, अन्नदान, वस्त्र दान आदि करना। पांचवाँ चरण अंत में पूर्वजों की विदाई या विसर्जन – पूजा समाप्त कर शुभ विचारों के साथ विदाई देना।
- मन – भाव और मंत्र
- श्रद्धापूर्ण मन से पूजा करना चाहिए।
- “ॐ सर्वपितृ देवताभ्यो नमः” जैसे मंत्रों का उच्चारण लाभदायक कहा गया है।
- आत्म‑निरीक्षण करना — यदि पूर्वजों से कोई दोष हो गया हो, उससे प्रायश्चित्त करना, क्षमाप्रार्थना करना।
 
श्राद्ध एवं पिंडदान के शुभ मुहूर्त

- श्राद्ध के समय में कुछ मुहूर्त विशेष रूप से उत्तम माने जाते हैं जैसे कुतु/Muhurta, रौहिण/Muhurta, अपरान्ह काल आदि।
- अमावस्या तिथि के आरंभ‑समय और समाप्ति समय से यह निर्धारित होता है कि कौन सा मुहूर्त आपके क्षेत्र में उपयुक्त है।
क्या करें और क्या नहीं करें
| क्या करें | क्या न करें | 
|---|---|
| सुबह स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। | पूजा पूजा के समय अशुद्धता न रखें, गन्दे होंठ या गंदे कपड़े न पहनें। | 
| भोजन और दान करते समय भूखे और निर्धनों को भोजन दें। | लहसुन, प्याज आदि तामसिक खाद्य सामग्री न लें। | 
| मन शांत हो, ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध से दूर रहें। | झूठ या छल‑छद्म पूर्वजों को न देना। | 
| ब्राह्मणों या धार्मिक विद्वानों को दक्षिणा देना। | पूजा‑विधि को अधूरा या अनपढ़‑पढ़ा करके करना। | 
| पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और धन्यवाद भाव बनाए रखें। | समय की अनदेखी या गलत मुहूर्त में कार्य करना। | 
पितृ पक्ष अमावस्या से जुड़े कुछ विशेष उपाय (Remedies / Upayas)
- दान करना: अनाज, वस्त्र, सफेद वस्त्र, तिल, काले तिल का दान।
- वृक्षारोपण: किसी वृक्ष की सेवा करना और पौधा लगाना।
- ब्राह्मणों को भोजन कराना, उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेना।
- अगर समय मिले तो तीर्थयात्रा करना या पवित्र नदियों में स्नान करना।
पितृ पक्ष अमावस्या: व्यक्तिगत अनुभव एवं सामाजिक योगदान
- भावनात्मक भाग: अपने पूर्वजों को याद करना, उनके योगदान को समझना और उनकी यादों को सम्मान देना, यह भी एक प्रकार की आत्म‑चिंतन की प्रक्रिया है।
- सामाजिक भाग: गांवों तथा परिवारों में एकता बनी रहती है। मिलजुल कर श्राद्ध, भोजनदान आदि से समाज में सहयोग की भावना बढ़ती है।
- पारंपरिक ज्ञान: हमारे धर्मग्रंथों, पुराणों में इस तिथि का वर्णन है। यह हमारी संस्कृति और विरासत को जीवित रखता है।
निष्कर्ष
पितृ पक्ष अमावस्या हिन्दू धर्म की उन पवित्र परंपराओं में से एक है जो हमें हमारे पूर्वजों से जोड़ती हैं। न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक‑नैतिक और आत्म‑चिंतन की दृष्टि से भी यह तिथि महत्वपूर्ण है। इस दिन श्रद्धा, भक्ति, और नैतिकता से किए हुए कर्म हमें भी सुकून देते हैं और पारिवारिक वातावरण में सकारात्मक बदलाव लाते हैं।
अगर आप इस लेख को पढ़ रहे हैं, तो इस अमावस्या पर समय निकालिए अपने पूर्वजों के लिए। उनकी आत्मा की शांति के लिए कुछ पूजा‑कार्य करें, दान करें, अभिप्रेरणा लें, और अपने कर्तव्यों को याद रखें। साथ ही, इस लेख को शेयर करें ताकि और लोग भी इस महत्वपूर्ण दिन की जानकारी पा सकें।
